तिजारा जी जैन मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है। यह मंदिर तीर्थंकर, चंद्रप्रभु भगवान को समर्पित है। मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है और यह वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर के चारों ओर एक भव्य स्थान है जिसमें कई अन्य मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल भी हैं। 1956 में एक खुदाई के दौरान आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभु की मुख्य मूर्ति मिली और मंदिर की स्थापना की गई। पद्मासन मुद्रा में चंद्र प्रभु की 15 इंच की मूर्ति बहुत सुंदर दिखती है और सफेद संगमरमर से बनी है। शिलालेख के अनुसार यह मूर्ति विशाखा शुक्ल 3 दिन 1554 को स्थापित की गई थी। बाद में वर्ष 1972 में चंद्र प्रभु की एक और 8 इंच की काली मूर्ति इसी तरह के कमल की स्थिति में मिली। यह पूज्य आचार्य निर्मल सागरजी महाराज की विशेषज्ञ देखरेख में मिली थी। दोनों मूर्तियों की स्थापना के बाद यह स्थान फिर से तीर्थ बन गया। १६ अगस्त १९५६ को सफ़ेद रंग की चन्द्रप्रभ भगवान की एक प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई थी। यहाँ स्थित एक टीले से यह मूर्ति निकलने के बाद ऐसा विश्वास हो गया था की यह एक "देहरा...
उत्तम क्षमा भाद्रमाह के सुद पंचमी से दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व शुरू होते है यह पहला दिन होता है ईस दिन ऋषि पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है॥ (क) हम उनसे क्षमा मांगते है जिनके साथ हमने बूरा व्यवहार किया हो और उन्हें क्षमा करते है जिन्होंने हमारे साथ बूरा व्यवहार किया हो॥ सिर्फ इंसानो के लिए ही नहीं बल्कि हर एक इन्द्रिय से पांच इन्द्रिय जिवो के प्रति जिनमें जिव है उनके प्रति भी ऐसा भाव रखते हैं ॥ (ख) उत्तम क्षमा धर्म हमारी आत्मा को सही राह खोजने मे और क्षमा को जीवन और व्यवहार में लाना सिखाता है जिससे सम्यक दर्शन प्राप्त होता है ॥ सम्यक दर्शन वो चिज है जो आत्मा को कठोर तप त्याग की कुछ समय की यातना सहन करके परम आनंद मोक्ष को पाने का प्रथम मागॅ है ॥ इस दिन बोला जाता है- सबको क्षमा सबसे क्षमा ॥ उत्तम मार्दव भाद्रमाह के सुद छठ को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का दूसरा दिन होता है (क) अकसर धन, दौलत, शान और शौकत ईनसान को अहंकारी और अभिमानी बना देता है ऐसा व्यक्ति दूसरो को छोटा और अपने आप को सर्वोच्च मानता है॥ यह सब चीजें नाशवंत है यह सब चीजें एक दिन आप को छोड देंगी या फिर आपको एक दिन ज...