-- महा अर्घ --
मैं देव श्री अरहंत पूजूँ, सिद्ध पूजूँ चाव सों ।
आचार्य श्री उवझाय पूजूँ, साधु पूजूँ भाव सों ॥
अरहंत भाषित वैन पूजूँ, द्वादशांग रचे गनी ।
पूजूँ दिगम्बर गुरुचरण, शिवहेत सब आशा हनी ॥
सर्वज्ञ भाषित धर्म दशविधि, दयामय पूजूँ सदा ।
जजि भावना षोडस रत्नत्रय, जा बिना शिव नहिं कदा ॥
त्रैलोक्य के कृत्रिम अकृत्रिम, चैत्य चैत्यालय जजूँ ।
पंचमेरु नन्दीश्वर जिनालय, खचर सुर पूजित भजूँ ॥
कैलाश श्री सम्मेदगिरि गिरनार मैं पूजूँ, सदा ।
चम्पापुरी पावापुरी पुनि और तीरथ सर्वदा ।।
चौबीस श्री जिनराज पूजूँ, बीस क्षेत्र विदेह के ।
नामावली इक सहस वसु जय होय पति शिव गेह के ।।
(दोहा)
जल गन्धाक्षत पुष्प चुरु, दीप धूप फल लाय ।
सर्व पूज्य पद पूजहू बहू विधि भक्ति बढाय ॥
ऊँ ह्रीं भाव पूजा भाव वन्दना त्रिकाल पूजा त्रिकाल-वन्दना करै करावै भावना भावै श्रीअरहंत, सिद्वजी, आचार्यजी, उपाध्यायजी, सर्वसाधुजी पंच परमेष्ठिभ्यो नमः । प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चराणानुयोग, द्रव्यानुयोगेभ्यो नमः | दर्शनविशुद्धयादि षोडश कारणेभ्यो नमः । उत्तमक्षमदि दशलक्षण धर्मेभ्योः नमः । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक चरित्रेभ्यो नमः । जल विषे, थल विषे, आकाश विषे, गुफा विषे, पहाड विषे, नगर-नगरी विषे उर्ध्वलोक मध्यलोक पाताल लोक विषे विराजमान कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालय स्थित जिनबिम्बेभ्यो नमः । विदेह क्षेत्र विद्यमान बीस तीर्थकरेभ्यो नमः । पाँच भरत पाँच ऐरावत दसक्षेत्र सम्बन्धी तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो नमः । नन्दीश्वर दीप स्थित बावन जिनचैत्यालयोभ्य नमः । पंचमेरु सम्बन्धि अस्सी जिनचैत्यालयोभ्यो नमः । श्री सम्मैद शिखर, कैलाश गिरी, चम्पापुरी, पावापुर, गिरनार आदि सिद्धक्षेत्रेभ्यो नमः । जैन बद्री, मूल बद्री, राजग्रही शत्रुंजय, तारंगा, कुन्डलपुर, सोनागिरि, ऊन, बड्वानी, मुक्तागिरी, सिद्ववरकूट, नैनागिर आदि तीर्थक्षेत्रेभ्योनमः । तीर्थकर पंचकल्याणक तीर्थ क्षेत्रेभ्यो नमः । श्री गौतमस्वामी, कुन्दकुन्दाचार्य श्रीचारण ऋद्विधारीसात परमऋषिभ्यो नमः। इति उपर्युक्तभ्यः सर्वेभ्यो महा अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
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