लोक शिखर के वासी हैं प्रभु, तीर्थंकर सुपार्श्व जिननाथ । नयन द्वार को खोल खड़े हैं, आओ! विराजो! हे जगनाथ ।। सुन्दर नगरी वाराणसी स्थित, राज्य करें रजा सुप्रतिष्टित । पृथ्वीसेना उनकी रानी, देखे स्वप्ना सोलह अभिरामी ।। तीर्थंकर सूत गर्भ में आये, सुरगण आकर मोद मनाये । शुक्ल ज्येष्ठ द्वादशी शुभ दिन, जन्मे अहमिन्द्र योग में श्रीजिन ।। जन्मोत्सव की ख़ुशी असीमित, पूरी वाराणसी हुई सुशोभित । बढे सुपाश्वजिन चन्द्र समान, मुख पर बसे मंद मुस्कान ।। समय प्रवाह रहा गतिशील, कन्याएं परनाई सुशील । लोक प्रिय शासन कहलाता, पर दुष्टों का दिल दहलाता ।। नित प्रति...
Jinvaani path, pooja & stotra