Skip to main content

Posts

Showing posts with the label चालीसा-Chalisa

चालीसा : श्री सुपार्श्वनाथ जी | Suparasnath ji Chalisa

लोक शिखर के वासी हैं प्रभु, तीर्थंकर सुपार्श्व जिननाथ । नयन द्वार को खोल खड़े हैं, आओ! विराजो! हे जगनाथ ।। सुन्दर नगरी वाराणसी स्थित, राज्य करें रजा सुप्रतिष्टित । पृथ्वीसेना उनकी रानी, देखे स्वप्ना सोलह अभिरामी ।। तीर्थंकर सूत गर्भ में आये, सुरगण आकर मोद मनाये । शुक्ल ज्येष्ठ द्वादशी शुभ दिन, जन्मे अहमिन्द्र योग में श्रीजिन ।। जन्मोत्सव की ख़ुशी असीमित, पूरी वाराणसी हुई सुशोभित । बढे सुपाश्वजिन चन्द्र समान, मुख पर बसे मंद मुस्कान ।। समय प्रवाह रहा गतिशील, कन्याएं परनाई सुशील । लोक प्रिय शासन कहलाता, पर दुष्टों का दिल दहलाता ।। नित प्रति...

चालीसा : श्री नेमिनाथ जी | Shri Neminath Chalisa

श्री जिनवाणी शीश धार कर, सिद्ध परभू का करके ध्यान । लिखू नेमि चालीसा सुखकार, नेमी प्रभु की शरण में आन।। समुन्द्र विजय यादव कुलराई, सौरिपुर रजधानी कहाई । शिवादेवी उनकी महारानी, षष्ठी कार्तिक शुक्ल बखानी ।। सुख से शयन करें शैया पर, सपने देखे सौलह सुन्दर । तज विमान जयंत अवतारे, हुए मनोरथ पूरण सारे ।। प्रतिदिन महल में रतन बरसते, यदुवंशी निज मन में हरषते । दिन षष्ठी सावन शुक्ल का, हुआ अभ्युदय पुत्र रतन का ।। तिन लोक में आनद छाया, प्रभु को मेरु पर पधराश । न्वहन हेतु जल ले क्षीरसागर, मणियो के थे कलश मनोहर ।। कर...

चालीसा : श्री नमिनाथ जी | Shri Naminath ji Chalisa

सतत पूज्यनीय भगवन, नमिनाथ जिन महिभावान । भक्त करें जो मन में ध्याय, पा जाते मुक्ति वरदान ।। जय श्री नमिनाथ जिन स्वामी, वसु गुण मण्डित प्रभु प्रणमामि । मिथिला नगरी प्रान्त बिहार, श्री विजय राज्य करें हितकार ।। विप्रा देवी महारानी थी, रूप गुणों की वो खानी थी । कृष्णाश्विन द्वितीय सुखदाता, षोडश स्वपन देखती माता।। अपराजित विमान को तजकर, जननी उदर बसे प्रभु आकर । कृष्ण असाढ़ दशमी सुखकार, भूतल पर हुआ प्रभु अवतार ।। आयु सहस दस वर्ष प्रभु की, धनु पंद्रह अव्गना उनकी । तरुण हुए जब राजकुमार, हुआ विवाह तब आनंदकार ।। एक दिन भ्रमण...

चालीसा : श्री मल्लिनाथ जी | Chalisa Mallinath Ji

मोहमल्ल मद मर्दन करते, मन्मथ दुर्ध्दर का मद हरते । धैर्य खडग से कर्म निवारे, बाल्यती को नमन हमारे ।। बिहार प्रान्त की मिथिला नगरी, राज्य करे कुम्भ काश्यप गोत्री । प्रभावती महारानी उनकी, वर्षा होती थी रत्नो की ।। अपराजित विमान को तज कर, जननी उदार बसे प्रभु आकर । मंगसिर शुक्ल एकादशी शुभ दिन, जन्मे तीन ज्ञान युक्त श्री जिन ।। पूनम चन्द्र समान हो शोभित, इंद्र न्वहन करते हो मोहित । तांडव नृत्य करे खुश हो कर, निरखे प्रभु को विस्मित हो कर ।। बढे प्यार से मल्लि कुमार, तन की शोभा हुई अपार । पचपन सहस आयु प्रभुवर की...

चालीसा : श्री अरहनाथ जी | Shri Arahnath Ji Chalisa

श्री अरहनाथ जिनेन्द्र गुणाकर, ज्ञान दरस सुख बल रत्नाकर । कल्पवृक्ष सम सुख के सागर, पार हुए निज आतम ध्याकर ।। अरहनाथ वसु अरि के नाशक, हुए हस्तिनापुर के शाषक । माँ मित्रसेना पिता सुदर्शन, चक्रवर्ती बन दिया दिग्दर्शन ।। सहस चौरासी आयु प्रभु की, अवगाहना थी तीस धनुष की । वर्ण सुवर्ण समान था पीत, रोग शोक थे तुमसे भीत ।। ब्याह हुआ जब प्रीत कुमार का, स्वपन हुआ साकार पिता का । राज्याभिषेक हुआ अरहजिन का, हुआ अभ्युदय चक्र रतन का ।। एक दिन देखा शरद ऋतू में, मेघ विलीन हुए क्षण भर में । उदित हुआ वैराग्य ह्रदय में, लौकंतिक सुर आये पल में ।। अरविन्द पुत्र को देकर राज, गए सहेतुक वन जिनराज । मंगसिर की दशमी उजियारी, परम दिगंबर दीक्षा धारी ।। पंचमुश्ठी उखाड़े केश, तन से ममत्व रहा नहीं दलेश । नगर चक्रपुर गए पारण हित, पड्गाहे भूपति अपराजित ।। परसुख शुद्दाहार कराये, पंचाशचर्य देव कराये । कठिन तपस्या करते वन में, लीन रहे आतम चिंतन में ।। कार्तिक मास द्वादशी उज्जवल, प्रभु विराजे आम्र वृक्ष तल । अंतर ज्ञान ज्योति प्रगटाई, हुए केवली श्री जिनराई ।। देव करे उत...

चालीसा : श्री कुन्थु नाथ जी | Shri Kunthunath Chalisa

दया सिन्धु कुन्थु जिनराज, भव सिंधु तिरने को जहाज। कामदेव चाकरी महाराज, दया करो हम पर भी आज।। जय श्री कुन्थु नाथ गुणखान, परम यशस्वी महिमावान । हस्तिनापुर नगरी के भूपति, शूरसेन कुरुवंशी अधिपति ।। महारानी थी श्रीमती उनकी, वर्षा होती थी रतनन की । प्रतिपदा वैशाख उजियारी, जन्मे तीर्थंकर बलधारी ।। गहन भक्ति अपने उर धारे, हस्तिनापुर आये सुर सारे । इन्द्र प्रभु को गोद में लेकर, गए सुमेरु हर्षित हो कर ।। न्हवन करे निर्मल जल लेकर, ताण्डव नृत्य करे भक्ति भर । कुंथुनाथ नाम शुभ देकर, इन्द्र करें स्तवन मनोहर ।। दिव्या वस्त्राभूषण पहनाये, वापिस...

चालीसा : श्री शांतिनाथ जी | Shri Shantinath ji Chalisa

शांतिनाथ महाराज का, चालीसा सुखकार । मोक्ष प्राप्ति के ही लिए, कहूँ सुनो चितधार ।। चालीसा चालीस दिन तक, कह चालीस बार। बढे जगत सम्पन्न, सुमत अनुपम शुद्द विचार ।। शांतिनाथ तुम शांतिनायक, पंचम चक्री जग सुखदायक । तुम्ही हो सौलवे तीर्थंकर, पूजे देव भूप सुर गणधर।। पंचाचार गुणों के धारी, कर्म रहित आठो गुणकारी । तुमने मोक्ष का मार्ग दिखाया, निज गुण ज्ञान भानु प्रगटाया ।। स्यादवाद विज्ञान उचारा, आप तिरेन औरन को तारा । ऐसे जिन को नमस्कार कर, चढू सुमत शांति नौका पर ।। सुक्ष्म सी कुछ गाथा गाता, हस्तिनापुर जग विख्याता । विश्वसेन पितु, ऐरा मात...