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श्री अनंतनाथ जी जिन पूजा - Shree Anantnath ji jin pooja

पुष्पोत्तर तजि नगर अजुध्या जनम लियो सूर्या उर आय, सिंघसेन नृप के नन्दन, आनन्द अशेष भरे जगराय | गुन अंनत भगवंत धरे, भवदंद हरे तुम हे जिनराय, थापतु हौं त्रय बार उचरि के, कृपासिन्धु तिष्ठहु इत आय || ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् | ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः | ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् | शुचि नीर निरमल गंग को ले, कनक भृंग भराइया | मल करम धोवन हेत, मन वच काय धार ढराइया || जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो | शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं,...

चालीसा : श्री अनन्तनाथ जी | Shri Anantnath Ji Chalisa

अनन्त चतुष्टय धरी अनंत,  अनंत गुणों की खान अनन्त। सर्वशुद्ध ज्ञायक हैं अनन्त,  हरण करे मम दोष अनन्त ।। नगर अयोध्या महा सुखकार,  राज्य करे सिंहसेन अपार । सर्वयशा महादेवी उनकी,  जननी कहलाई जिनवर की ।। द्वादशी ज्येष्ठ कृष्ण सुखकारी,  जन्मे तीर्थंकर हितकारी । इन्द्र प्रभु को गोद में लेकर,  न्वहन करे मेरु पर जाकर ।। नाम अनंतनाथ शुभ दीना,  उत्सव करते नित्य नवीना । सार्थक हुआ नाम प्रभुवर का,  पार नहीं गुण के सागर का ।। वर्ण सुवर्ण समान प्रभु का,  ज्ञान धरें मुनि श्रुत अवधि का । आयु तीस लाख वर्ष उपाई,  धनुष अर्धशत तन ऊचाई ।। ब...

आरती अनंथ्नाथ जी | Aarti Anantnath Ji

करते हैं प्रभु की आरती, आतम की ज्योति जलेगी । प्रभुवर अनंत की भक्ति, सदा सोख्य भरेगी, सदा सोख्य भरेगी ॥ हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी हे सिंहसेन के राज दुलारे, जयश्यामा के प्यारे । साकेतपूरी के तुम नाथ, गुणाकार तुम न्यारे ॥ तेरी भक्ति से हर प्राणी में, शक्ति जगेगी, प्राणी में शक्ति जगेगी, हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी वदि ज्येष्ठ द्वादशी में प्रभुवर, दीक्षा को धारा था । चैत्री मावस में ज्ञान कल्याणक उत्सव प्यारा था ॥ प्रभु की दिव्यध्वनि दिव्यज्ञान, आलोक भरेगी, ज्ञान आलोक भरेगी॥ हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी