सिद्ध शिला पर विराजमान अनंतान्त सिद्ध परमेष्ठी भगवानों को मेरा नमस्कार है। वृषभादिक महावीर पर्यन्त, उँगलियों के २४ पोरों पर विराजमान २४ तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार है। सीमंधर आदि विद्यमान २० तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार है। सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र को मेरा बारम्बार नमस्कार है। चारों दिशाओं, विदिशाओं में जितने भी अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधू, जिन-धर्म, जिन-आगम, व जितने भी कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्य-चैत्यालय हैं, उनको मन-वच-काय से मेरा बारम्बार नमस्कार है। ५ भरत, ५ ऐरावत, १० क्षेत्र सम्बन्धी, ३० चौबीसी के ७२० जिनवरों को मेरा बारम्बार नमस्कार है। है भगवन! तीन लोक सम्बन्धी ८ करोड़ ५६ लाख ९७ हजार ४८१ अकृत्रिम जिन चैत्यालयों को मेरा नमन है। उन चैत्यालयों में स्थित ९२५ करोड़ ५३ लाख २७ हजार ९४८ जिन प्रतिमाओं की वंदना करती हूँ। \करता हूँ। हे भगवन! मैं यह भावना भाता हूँ कि मेरा आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो। अगर आज मेरी मृत्यु भी आती है, तो मैं तनिक भी न घबराऊँ। मेरा अत्यंत शांतिपूर्ण, समाधिपूर्वक मरण हो। जगत के जितने भी जीव हैं, वे सभी सुखी हों, उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट, दुःख, रोगादि न सता...
Jinvaani path, pooja & stotra