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Showing posts with the label अभिषेक-Abhishek

अमृत से गगरी भरो, कि न्हवन प्रभु आज करेंगे... || Amrit se gagri bharo , ki navan prabhu ka aaj karenge

(तर्ज - महलो का राजा मिला, के रानी बेटी राज करेगी...) अमृत से गगरी भरो, कि न्हवन प्रभु आज करेंगे। खुशी-खुशी मिल के चलो, कि न्हवन प्रभु आज करेंगे। टेक॥ सब साथी मिल कलश सजाओ, मङ्गलकारी गीत सुनाओ; मन में आनन्द भयो, कि न्हवन प्रभु आज करेंगे ।।१।। अमृत... इन्द्र इन्द्राणी मिल हर्ष मनावें, प्रभु-चरणों में शीश झुकावें; प्रभुजी की छवि निरखो, कि न्हवन प्रभु आज करेंगे ॥२ ।। अमृत... सुवर्ण कलश प्रभु उदकनि धारा, अङ्गे न्हावे जिनवर प्यारा; स्वामी जगत को खरो, कि न्हवन प्रभु आज करेंगे ॥३॥ अमृत... हे सुखकारी सब दु:खहारी, सेवा जिनकी प्यारी-प्यारी; लेकर ‘सरस’ को चलो, कि न्हवन प्रभु आज करेंगे ॥४॥ अमृत... अन्य प्यारे भजन /Read more Bhajans See More >>

अभिषेक विधि | Abhishek-vidhi

जिन-प्रतिमा अभिषेक व पूजन की पात्र होती है क्योंकि जिनेन्द्र प्रभु के दर्शन, अभिषेक, पूजन आदि से उन के गुणों का स्मरण हो जाता है। जिनबिम्ब अभिषेक: यह पाँचों कल्याणक-सम्पन्न जिन-प्रतिमा की पुरुषों द्वारा प्रतिदिन की जाने वाली न्हवन की क्रिया है। इस में प्रतिमाजी के आपाद-मस्तक सभी अंगों का प्रासुक जल से न्हवन किया जाता है। चरणाभिषेक : किन्हीं विशाल प्रतिमाओं के अभिषेक शीश की ऊंचाई तक मचान आदि के बिना संभव नहीं होते, उन के चरणों का न्हवन चरणाभिषेक कहलाता है| मस्तकाभिषेक: ऊपरोक्त प्रतिमाओं का मस्तकाभिषेक पर्वादि विशेष अवसरों पर किया जाता है; तथा प्रतिमाजी, मंदिरजी व क्षेत्र के अनुरक्षण व विकास के भावों से प्रायः बारह वर्षों के अंतराल से महामस्तकाभिषेक महोत्सव के विशाल आयोजन होते हैं| पंचामृत-अभिषेक: कहीं कहीं दूध, दही, घी, इक्षुरस आदि से प्रतिमा के न्हवन की परंपरा देखने में आती है| प्रक्षालन: अचल प्रतिमाओं के पूर्ण अभिषेक में जल की मात्रा अधिक लगने व गंधोदक वेदी जी में फैलने से जीव-उत्पत्ति व हिंसा बचाने के भाव से, उनका केवल गीले छन्नों से प्रक्षालन होता है, तथा प्रतिमाओं की संख्या अधि...

शांतिधारा वृहद | Shantidhara Vrahad

ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वंवं मंमं हंहं संसं तंतं पंपं झंझं झ्वीं झ्वीं क्ष्वीं क्ष्वीं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय-द्रावय नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ओं ह्रीं क्रों अस्माकं पापं खण्डय खण्डय जहि-जहि दह-दह पच-पच पाचय पाचय ओं नमो अर्हन् झं झ्वीं क्ष्वीं हं सं झं वं ह्व: प: ह: क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षं क्ष: क्ष्वीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रैं ह्रों ह्रौं ह्रं ह्र: द्रां द्रीं द्रावय द्रावय नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ठ: ठ: अस्माकं ----------- श्रीरस्तु वृद्धिरस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु शान्तिरस्तु कान्तिरस्तु कल्याणमस्तु स्वाहा। एवं अस्माकं ------------ कार्यसिद्ध्यर्थं सर्वविघ्न-निवारणार्थं श्रीमद्भगवदर्हत्सर्वज्ञपरमेष्ठि-परमपवित्राय नमो नम:। अस्माकं ----------------- श्री तीर्थंकरभक्ति- प्रसादात् सद्धर्म-श्रीबलायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिरस्तु, स्वशिष्य-परशिष्यवर्गा: प्रसीदन्तु न: | ओं वृषभादय: श्रीवर्द्धमानपर्यन्ताश्चतुर्विंशत्यर्हन्तो भगवन्त: सर्वज्ञा: परममंगल (धारागत तीर्थंकर का नाम) नामधेया: अस्माकं इहामुत्र च सिद्...

जलाभिषेक - Jal abhishek Mantra -Duravnamra

दुरावनम्र-सुरनाथ-किरीट-कोटि- संलग्न-रत्न-किरण-च्छवि-धुसराध्रिम । प्रस्वेद-ताप-मल-मुक्तमपि-प्रकृष्टै- र्भक्तया जलै-र्जिनपर्ति बहुधाभिषेच्चे ।। मंत्र-१: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं झं झं इवीं इवीं क्ष्वीं क्ष्वीं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते पवित्रतरजलेन जिनाभिषेचयामीस्वाहा । मंत्र-२: ॐ ह्रीं श्रीमन्तं भगवन्तं क्रपालसंतम वृषभादि वर्धमानांत-चतुर्विंशति तीर्थंकर-परमदेवं आध्यानाम आध्ये जम्बुदीपे भरतक्षेत्रे आर्यखंडे देशे.... नाम नगरे एतद .... जिन चैत्यालये वीर निर्वाणसंवत ...... मासोत्तम-मासे ...... मासे . पक्षे........ तिथौ .....

प्रतिमा प्रक्षाल विधि पाठ - Pratima prakshal vidhi paath

( दोहा) परिणामों की स्वच्छता, के निमित्त जिनबिम्ब | इसीलिए मैं निरखता, इनमें निज-प्रतिबिम्ब || पंच-प्रभू के चरण में, वंदन करूँ त्रिकाल | निर्मल-जल से कर रहा, प्रतिमा का प्रक्षाल || अथ पौर्वाह्रिक देववंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजा- स्तवन वंदनासमेतं श्री पंचमहागुरुभक्तिपूर्वकं कायोत्सर्गं करोम्यहम् । (नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ें) (छप्पय) तीन लोक के कृत्रिम औ अकृत्रिम सारे | जिनबिम्बों को नित प्रति अगणित नमन हमारे || श्रीजिनवर की अन्तर्मुख छवि उर में धारूँ | जिन में निज का, निज में जिन-प्रतिबिम्ब निहारूँ || मैं करूँ आज संकल्प शुभ, जिन-प्रतिमा प्रक्षाल का | यह भाव-सुमन अर्पण करूँ, फल चाहूँ गुणमाल का || ओं ह्रीं प्रक्षाल-प्रतिज्ञायै पुष्पांजलिं क्षिपामि। (प्रक्षाल की प्रतिज्ञा हेतु पुष्प क्षेपण करें) (रोला) अंतरंग बहिरंग सुलक्ष्मी से जो शोभित | जिनकी मंगलवाणी पर है त्रिभुवन मोहित || श्रीजिनवर सेवा से क्षय मोहादि-विपत्ति | हे जिन! ‘श्री’ लिख, पाऊँगा निज-गुण सम्पत्ति || (अभिषेक-थाल की चौकी पर केशर से ‘श्री’ लिखें) (दोहा) अंतर्मुख मुद्रा सहित, शोभित श्री...

अभिषेक पाठ- (माघनंदि मुनि ) | Abhishek paath - Maaghnandiji

श्रीमन्नता-मर-शिरस्तट-रत्न-दीप्ति, तोयाव-भासि-चरणाम्बुज-युग्ममीशम् | अर्हन्त-मुन्नत-पद-प्रदमाभिनम्य, त्वन्मूर्तिषूद्य-दभिषेक-विधिं करिष्ये ||१|| अथ पौर्वाह्णिक/मध्याह्निक/अपराह्णिक-देववन्दनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल-कर्म-क्षयार्थं भाव-पूजा-वन्दना-स्तव-समेतं श्रीपंचमहागुरुभक्तिपुरस्सरं कायोत्सर्गं करोम्यहम्। ( २७ श्वासोच्छवास पूर्वक नौ बार णमोकार मंत्र का ध्यान करें) या: कृत्रिमास्तदितरा: प्रतिमा जिनस्य, संस्नापयन्ति पुरुहूत-मुखादयस्ता:| सद्भाव-लब्धि-समयादि-निमित्त-योगात्, तत्रैव-मुज्ज्वल-धियां कुसुमं क्षिपामि ||२|| जन्मोत्सवादि-समयेषु यदीयकीर्ति, सेन्द्रा: सुराप्तमदवारणगा: स्तुवन्ति | तस्याग्रतो जिनपते: परया विशुद्ध्या, पुष्पांजलिं मलयजात-मुपाक्षिपेऽहम् ||३|| यह पढ़कर अभिषेक-थाल में पुष्पांजलि क्षेपण कर अभिषेक की प्रतिज्ञा करें।) ओं ह्रीं अभिषेक-प्रतिज्ञायां पुष्पांजलिं क्षिपामि। श्रीपीठ-क्लृप्ते विशदाक्षतौघै:, श्रीप्रस्तरे पूर्ण-शशांक-कल्पे | श्रीवर्तके चन्द्रमसीति-वर्तां, सत्यापयन्तीं श्रियमालिखामि ||४|| ओं ह्रीं अर्हं श्री-लेखनं करोमि। कनकादि-निभं कम्रं पावनं ...

लघु शांतिधारा - Laghu Shanti-Dhara

||लघुशांतिधारा || ॐ नमः सिद्धेभ्यः ! ॐ नमः सिद्धेभ्यः ! ॐ नमः सिद्धेभ्यः ! श्री वीतरागाय नमः ! ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते, श्री पार्श्वतीर्थंकराय, द्वादश-गण-परिवेष्टिताय, शुक्लध्यान पवित्राय,सर्वज्ञाय, स्वयंभुवे, सिद्धाय, बुद्धाय, परमात्मने, परमसुखाय, त्रैलोकमाही व्यप्ताय, अनंत-संसार-चक्र-परिमर्दनाय, अनंत दर्शनाय, अनंत ज्ञानाय, अनंतवीर्याय, अनंत सुखाय सिद्धाय, बुद्धाय, त्रिलोकवशंकराय, सत्यज्ञानाय, सत्यब्राह्मने, धरणेन्द्र फणामंडल मन्डिताय, ऋषि- आर्यिका,श्रावक-श्राविका-प्रमुख-चतुर्संघ-उपसर्ग विनाशनाय, घाती कर्म विनाशनाय, अघातीकर्म विनाशनाय, अप्वायाम(छिंद छिन्दे भिंद-भिंदे), मृत्यु (छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे), अतिकामम (छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे), रतिकामम (छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे), क्रोधं (छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे), आग्निभयम (छिंद-छिन्देभिंद-भिंदे), सर्व शत्रु भयं (छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे), सर्वोप्सर्गम(छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे), सर्व विघ्नं (छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे), सर्व भयं(छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे), सर्व राजभयं (छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे), सर्वचोरभयं (छिंद-छिन्दे भिंद-भिंदे...

जलाभिषेक || प्रक्षाल-पाठ - Jal Abhishek Path | Prakshal Path

|| जलाभिषेक - प्रक्षाल-पाठ ||  (प्रक्षाल करते समय पढ़ना चाहिये। ) (ढाल मंगल की,छंद अडिल्ल और गीता) जय-जय भगवंते सदा, मंगल मूल महान। वीतराग सर्वज्ञ प्रभु,नमौ जोरि जुगपान।। श्रीजिन जगमें ऐसो को बुधवंत जू। जो तुम गुण वरननि करि पावै अंत जू।। इंद्रादिक सुर चार ज्ञानधारी मुनी। कहि न सकै तुम गुणगण हे त्रिभुवनधनी।। अनुपम अमित तुम गुणनि-वारिधि,ज्यों अलोकाकाश है। किमि धरै हम उर कोषमें सो अकथ-गुण-मणि-राश है। पै निज प्रयोजन सिद्धि की तुम नाम में ही शक्ति है। यह चित्त में सरधान यातैं नाम में ही भक्ति है।।१।। ज्ञानावरणी दर्शन,आवरणी भने। कर्म मोहनी अंतराय चारों हने।। लोकालोक विलोक्यो केवलज्ञान में। इंद्रादिक मुकुट नये सुरथान में।। तब इंद्र जान्यो अवधितैं,उठि सुरन-युत बंदत भयो। तुम पुन्यको प्रेरयो हरी ह्वै मुदित धनपतिसौं चयो।। अब वेगि जाय रचौ समवसृती सफल सुरपदको करौ। साक्षात् श्री अरहंत के दर्शन करौ कल्मष हरौ।।२।। ऐसे वचन सुने सुरपति के धनपती। चल आयो ततकाल मोद धारै अती।। वीतराग छवि देखि शब्द जय जय चयौ। दे प्रदच्छिना बार बार वंदत भयौ।। अति भक्ति-भीनों नम्र-चित ह्वै स...

श्री मंगलाष्टक स्तोत्र - अर्थ सहित | Mangalashtak - Mangal asthak stotra

श्री मंगलाष्टक स्तोत्र - अर्थ सहित अर्हन्तो भगवत इन्द्रमहिताः, सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा, आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायकाः श्रीसिद्धान्तसुपाठकाः, मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं, कुर्वन्तु नः मंगलम्   ||1|| अर्थ – इन्द्रों द्वारा जिनकी पूजा की गई, ऐसे अरिहन्त भगवान, सिद्ध पद के स्वामी ऐसे सिद्ध भगवान, जिन शासन को प्रकाशित करने वाले ऐसे आचार्य, जैन सिद्धांत को सुव्यवस्थित पढ़ाने वाले ऐसे उपाध्याय, रत्नत्रय के आराधक ऐसे साधु, ये पाँचों  परमेष्ठी प्रतिदिन हमारे पापों को नष्ट करें और हमें सुखी करे! श्रीमन्नम्र – सुरासुरेन्द्र – मुकुट – प्रद्योत – रत्नप्रभा- भास्वत्पादनखेन्दवः प्रवचनाम्भोधीन्दवः स्थायिनः ये सर्वे जिन-सिद्ध-सूर्यनुगतास्ते पाठकाः साधवः स्तुत्या योगीजनैश्च पञ्चगुरवः कुर्वन्तु नः मंगलम् ||2|| अर्थ – शोभायुक्त और नमस्कार करते हुए देवेन्द्रों और असुरेन्द्रो के मुकुटों के चमकदार रत्नों की कान्ति से जिनके श्री चरणों के नखरुपी चन्द्रमा की ज्योति स्फुरायमान हो रही है, और जो प्रवचन रुप सागर की वृद्धि करने...

श्री मंगलाष्टक स्तोत्र | Mangalashtak Stotra

|| श्री मंगलाष्टक स्तोत्र || अर्हन्तो भगवत इन्द्रमहिता:, सिद्धाश्च सिद्धिश्वरा आचार्याः जिनशासनोन्न्तिकरा:, पूज्या उपाध्यायका: | श्रीसिद्धान्तसुपाठका:, मुनिवरा रत्नत्रयाराधका: पञ्चैते परमेष्ठिन: प्रतिदिनं, कुर्वन्तु न मंगलम् ||1|| श्रीमन्नम्र सुरासुरेन्द्र मुकुट प्रद्योत रत्नप्रभा भास्वत्पादनखेन्दव: प्रवचनाम्भोधीन्दव: स्थायिन: | ये सर्वे जिन सिद्ध् सूर्यानुगतास्ते पाठका: साधव: स्तुत्या योगीजनैश्च पञ्चगुरुव: कुर्वन्तु: न: मंगलम् ||2|| सम्यगदर्शन बोध व्रतममलं, रत्नत्रयं पावनं | मुक्ति श्रीनगराधिनाथ जिनप्युक्तोऽपवर्गपद: || धर्म सुक्तिसुधा च चैत्यमखिलं, चैत्यालयं श्रयालयं | प्रोक्तं च त्रिविधं चतुविर्धममी कुर्वन्तु: न: मंगलम् ||3|| नाभेयादिजिना: प्रशस्त वदना: ख्याताश्च्तुर्विन्शति: | श्रीमन्तो भरतेश्वर प्रभृतयो ये चक्रिणो द्वाद्श || ये विष्णु प्रतिविष्णु लाङ्गलधरा: सप्तोत्तराविन्श्ति: | त्रैकाल्ये प्रथितास्त्रिषष्टि पुरुषा: कुर्वन्तु: न: मंगलम् ||4|| ये सर्वौषध ऋद्धय: सुतपसो वृद्धिगता: पञ्च ये | ये चाष्टान्ग महानिमित्तकुशला: येऽष्टाविधाश्चरणा: || पञ्चज्ञानधरास्त...