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विष्णुकुमार रक्षा बंधन पर्व कथा || Jain Vishnu Kumar Muni Raksha bandhan festival story

रक्षाबंधन पर्व जैन समुदाय द्वारा हर्षपूर्वक मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन विष्णु कुमार मुनिराज ने ७०० मुनियों पर हो रहे उपसर्ग को दूर किया था। जैन धर्म में रक्षाबंधन इसी कारण से मनाया जाता है। जैन धर्म के 19 वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ स्वामी के समय में हस्तिनापुर में महापद्म नामक चक्रवर्ती का राज्य था तथा उनकी रानी लक्ष्मी मति थी. उसके दो पुत्र विष्णुकुमार और पद्म थे| जब राजा महापद्म को संसार भोगो के प्रति वैराग्य हुआ, तब उन्होंने दीक्षा लेने का विचार किया| फिर राजा ने अपना राज्य अपने बड़े पुत्र को देने का निश्चय किया, तो विष्णु कुमारजी ने राज्य लेने से मना कर दिया| विष्णु कुमारजी ने अपने पिताजी पूछा कि आप यह चक्रवर्ती का पद, छह खंड का साम्राज्य, पूरा भरत क्षेत्र क्यों छोड़ रहे हो? तब राजा महापद्म ने कहा कि अब मैं जान गया हूँ कि इस संसार में सार नहीं है| तब फिर विष्णु कुमारजी ने पूंछा कि जब इस संसार में कोई सार नहीं है और आप स्वयं भी जब इस संसार को छोड़ रहे है, तो क्या आपको इस तरह की असार वस्तु को अपने बेटे को भेंट करना चाहिए? जो सच्चे पिता होते हैं, वो अपने बेटे को अच्छी चीज़ ह...

दशलक्षण धर्म का मर्म | Daslakshan dharm ka marm

क्षमा भाव अविकार, स्वाश्रय से प्रकटे सुखद। आनन्द अपरम्पार, शत्रु न दीखे जगत में ।।१।। मार्दव भाव सुधार, निज रस ज्ञानानंद मय। वेदूँ निज अविकार, नहीं मान नहीं दीनता ।।२।। सरल स्वभावी होय, अविनाशी वैभव लहूँ। वांछा रहे न कोय, माया शल्य विनष्ट हो ॥३॥ परम पवित्र स्वभाव, अविरल वर्ते ध्यान में। नाशे सर्व विभाव, सहजहि उत्तम शौच हो ।।४।। सत्स्वरूप शुद्धात्म, जानूँ, मानूँ, आचरूँ। प्रकटे पद परमात्म, सत्य धर्म सुखकार हो ॥५॥ संयम हो सुखकार, अहो अतीन्द्रिय ज्ञानमय । उपजे नहीं विकार, परम अहिंसा विस्तरे ।।६।। निज में ही विश्राम, जहाँ कोई इच्छा नहीं। ध्याऊँ आतमराम, उत्तम तप मंगलमयी ।।७।। परभावों का त्याग, सहज होय आनन्दमय। निज स्वभाव में पाग, रहूँ निराकुल मुक्त प्रभु ।।८।। सहज अकिंचन रूप, नहीं परमाणु मात्र मम्। भाऊँ शुद्ध चिद्रूप, होय सहज निर्ग्रंथ पद ।९।। परम ब्रह्म अम्लान, ध्याऊँ नित निर्द्वन्द्व हो। ब्रह्मचर्य सुख खान, पूर्ण होय आनंदमय ।।१०।। एक रूप निज धर्म, दशलक्षण व्यवहार से। स्वाश्रय से यह मर्म, जाना ज्ञान विरागमय ।।११।। Artist - ...

SHRI RAVI VRAT POOJA / श्री रविव्रत पूजा

SHRI RAVI VRAT POOJA / श्री रविव्रत पूजा (अडिल्ल छन्द) यह भविजन हितकार, सु रविव्रत जिन-कही | करहु भव्यजन सर्व, सु-मन देके सही || पूजो पार्श्व-जिनेन्द्र, त्रियोग लगायके | मिटे सकल-संताप, मिले निधि आयके || मतिसागर इक सेठ, सुग्रंथन में कह्यो | उनने भी यह पूजा, कर आनंद लह्यो || ता तें रविव्रत सार, जो भविजन कीजिये | सुख सम्पति संतान, अतुल निधि लीजिये || (दोहा) प्रणमो पार्श्व-जिनेश को, हाथ-जोड़ सिर-नाय | परभव-सुख के कारने, पूजा करो बनाय || रविवार-व्रत के दिना, ये ही पूजन ठान | ता-फल सम्पति को लहें, निश्चय लीजे मान || ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र!अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्) ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्। उज्ज्वल जल भरके अति लावो, रतन-कटोरन माँहीं | धार देत अतिहर्ष बढ़ावत, जन्म-जरा मिट जाहीं || पारसनाथ-जिनेश्वर पूजो, रविव्रत के दिन भार्इ | सुख-सम्पत्ति बहु होय तुरत ही, आनंद-मंगलदार्इ || ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रा...

SRUTPANCHAMI POOJA / श्रुतपंचमी पूजा

SRUTPANCHAMI POOJA / श्रुतपंचमी पूजा कवियत्री अरुणा जैन ‘भारती’ स्थापना : कुसुमलता छंद सरस्वती की पूजा करने, श्री जिनमंदिर आये हम | भव्य-भारती की पूजाकर, जीवन सफल बनाएं हम || श्रुत के आराधन से मन में, ज्ञान की ज्योति जलाएं अब | पर्यायों को कर विनष्ट अब, निजस्वरूप को पायें सब || कर रहे आह्वान मात का, दृढ़ता हमको दे देना | सदा रहे बस ध्यान आपका, ये ही सबक सिखा देना || ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत षट्खंडागम! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (आह्वाननम्)! ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत षट्खंडागम! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत षट्खंडागम! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्) (जोगीरासा) प्रासुक निर्मल नीर लिये, प्रभु का अभिषेक करायें | गंधोदक निज शीश धारकर, प्रभुवाणी चित्त लायें || श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें | चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें || ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१। शीतल और सुवासित चंदन, केसर संग घिसायें | जिनवाणी का अर्चन करके, अंतर ताप मिटाये...

श्री नन्दीश्वर द्वीप (अष्टाह्निका पर्व) पूजन - Shri Nandishwara Dweep Puja

|| श्री नन्दीश्वर द्वीप (अष्टाह्निका पर्व) पूजन || सरब-परव में बड़ो अठाई परव है | नंदीश्वर सुर जाहिं लेय वसु दरब है || हमें सकति सो नाहिं इहाँ करि थापना | पूजें जिनगृह-प्रतिमा है हित आपना || ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षुविद्यमान द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्) ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षुविद्यमान द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षुविद्यमान द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्) कंचन मणि मय भृंगार, तीरथ नीर भरा | तिहुँ धार दई निरवार, जामन मरन जरा || नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं | वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं || ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१। भव तप हर शीतल वास, जो चंदन नाहीं | प्रभु य...

दशलक्षण-धर्म पूजा | Daslakshan Dharm Puja

|| दशलक्षण-धर्म पूजा ||  (अडिल्ल छन्द) उत्तमछिमा मारदव आरजव भाव हैं, सत्य शौच संयम तप त्याग उपाव हैं | आकिंचन ब्रह्मचर्य धरम दश सार हैं, चहुँगति दु:ख तें काढ़ि मुकति करतार हैं || ओं ह्रीं श्री उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्म! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्) ओं ह्रीं श्री उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्म!अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्) ओं ह्रीं श्री उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्म! अत्र मम सत्रिहितो भव भव वषट्! (सत्रिधिकरणम्) (सोरठा छन्द) हेमाचल की धार, मुनि-चित सम शीतल सुरभि | भव-आताप निवार, दस-लक्षण पूजूं सदा || ओं ह्रीं श्री उत्तमक्षमा-मार्दव-आर्जव-सत्य-शौच-संयम-तप-त्याग- आकिञ्चन्य-ब्रह्मचर्येति दशलक्षणधर्माय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । चंदन-केशर गार, होय सुवास दशों दिशा | भव-आताप निवार, दस-लक्षण पूजूं सदा || ओं ह्रीं श्री उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्माय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा । अमल अखंडित सार, तंदुल चंद्र-समान शुभ | भव-आताप निवार, दस-लक्षण पूजूं सदा || ओं ह्रीं श्री उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्माय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षता...