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Showing posts with the label स्तुति - Stuti

प्रात: कालीन वंदना | Prataya kaaleen vandana | Morning Prayer

सिद्ध शिला पर विराजमान अनंतान्त सिद्ध परमेष्ठी भगवानों को मेरा नमस्कार है। वृषभादिक महावीर पर्यन्त, उँगलियों के २४ पोरों पर विराजमान २४ तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार है। सीमंधर आदि विद्यमान २० तीर्थंकरों को मेरा नमस्कार है। सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र को मेरा बारम्बार नमस्कार है। चारों दिशाओं, विदिशाओं में जितने भी अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधू, जिन-धर्म, जिन-आगम, व जितने भी कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्य-चैत्यालय हैं, उनको मन-वच-काय से मेरा बारम्बार नमस्कार है। ५ भरत, ५ ऐरावत, १० क्षेत्र सम्बन्धी, ३० चौबीसी के ७२० जिनवरों को मेरा बारम्बार नमस्कार है। है भगवन! तीन लोक सम्बन्धी ८ करोड़ ५६ लाख ९७ हजार ४८१ अकृत्रिम जिन चैत्यालयों को मेरा नमन है। उन चैत्यालयों में स्थित ९२५ करोड़ ५३ लाख २७ हजार ९४८ जिन प्रतिमाओं की वंदना करती हूँ। \करता हूँ। हे भगवन! मैं यह भावना भाता हूँ कि मेरा आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो। अगर आज मेरी मृत्यु भी आती है, तो मैं तनिक भी न घबराऊँ। मेरा अत्यंत शांतिपूर्ण, समाधिपूर्वक मरण हो। जगत के जितने भी जीव हैं, वे सभी सुखी हों, उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट, दुःख, रोगादि न सता...

वीतराग सर्वग्य हितंकर (देव स्तुति) | Veetrag Sarvagya Hitankar .. Dev stuti

वीतराग सर्वग्य हितंकर, भविजन को पूरो आस | ज्ञान भानु क उदय करो, मम मिथ्यातम क होय विनास ||1|| जीवों की हम करुणा, झूत वचन नहीं कहें कदा | परधन कबहूँ न हरहूँ न स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा ||2|| तृष्णा लोभ बढ़े न मेरा, तोष सुधा नित पिया करें | श्री जिनधर्म हमारा प्यारा, तिस की सेवा किया करें ||3|| दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार | मेल मिलाप बढावें हम सब, धर्मोंन्नति का करें प्रचार ||4|| सुख-दुःख में हम समता धारें, रहें अचल जिमि सदा अटल | न्यायमार्ग को लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतमबल ||5|| अष्ट करम जो दुःख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय | नाम आपका जपें निरंतर, विघ्न शोक सब ही टल जाए ||6|| आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप-मैल नहिं चढ़े कदा | विद्या की हो उन्नति हम में, धर्म ज्ञान हू बढ़े सदा ||7|| हाथ जोडकर शीश नवायें, तुम को भविजन खड़े-खड़े | यह सब पूरो आस हमारी, चरण-शरण में आन पड़े ||8||

स्तुति पाठ | Stuti Path | Mai tum charan kamal gun gaye ...

तुम तरण-तारण भव-निवारण, भविक मन आनन्दनो | श्री नाभिनन्दन जगत-वन्दन, आदिनाथ निरंजनो || तुम आदिनाथ अनादि सेऊँ, सेय पद-पूजा करूं | कैलाशगिरि पर ऋषभ जिनवर, पद कमल हरिदै धरूं || तुम अजितनाथ अजीत जीते, अष्टकर्म महाबली | इह विरद सुनकर शरण आयो, कृपा कीज्यो नाथ जी || तुम चन्द्रवदन सुचन्द्रलक्षण चन्द्रपुरी परमेश्वरो | महासेन-नन्दन जगत-वंदन, चन्द्रनाथ जिनेश्वरो || तुम शांति पांच, कल्याण पूजों, शुद्ध मन-वच-काय जू | दुर्भिक्ष चोरी पापनाशन, विघन जाय पलाय जू || तुम बालब्रम्ह विवेक-सागर, भव्य कमल विकाशनो | श्री नेमिनाथ पवित्र दिनकर, पाप-तिमिर विनाशनो || जिन तजी राजुल राजकन्या, कामसैन्या वश करी | चारित्ररथ चढ़ी भये दूलहा, जाय शिव-रमणी वरी || कंदर्प दर्प सु सर्प-लक्ष्छन, कमठ-शठ निर्मद कियो | अश्वसेन-नंदन जगत-वन्दन सकल संघ मंगल कियो || जिन धरी बालकपणे दीक्षा, कमठ-मान विदारकैं | श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के पद, मैं नमों शिर नायकैं || तुम कर्मघाता मोक्षदाता, दीन जानि दया करो | सिद्धार्थ-नंदन जगत-वंदन, महावीर जिनेश्वरो || छत्र तीन सोहै सुर नर मोहै, विनती अब धारिये | कर जोड़ी सेवक विनवै प्रभु, आवागमन निवारिय...

दर्शन स्तुति | Darshan Stuti

अति पुण्य उदय मम आया, प्रभु तुमरा दर्शन पाया। अब तक तुमको बिन जाने, दुख पाये निज गुण हाने॥ पाये अनंते दु:ख अब तक, जगत को निज जानकर। सर्वज्ञ भाषित जगत हितकर, धर्म नहिं पहिचान कर॥ भव बंधकारक सुखप्रहारक, विषय में सुख मानकर। निजपर विवेचक ज्ञानमय,सुखनिधिसुधा नहिं पानकर॥ तव पद मम उर में आये, लखि कुमति विमोह पलाये। निज ज्ञान कला उर जागी, रुचिपूर्ण स्वहित में लागी॥ रुचि लगी हित में आत्म के, सतसंग में अब मन लगा। मन में हुई अब भावना, तव भक्ति में जाऊँ रंगा॥ प्रिय वचन की हो टेव, गुणीगण गान में ही चित पगै। शुभ शास्त्र का नित हो मनन, मन दोष वादन तैं भगै॥ कब समता उर में लाकर, द्वादश अनुप्रेक्षा भाकर। ममतामय भूत भगाकर, मुनिव्रत धारूँ वन जाकर॥ धरकर दिगम्बर रूप कब, अठ-बीस गुण पालन करूँ। दो-बीस परिषह सह सदा, शुभ धर्म दश धारन करूँ॥ तप तपूं द्वादश विधि सुखद नित, बंध आस्रव परिहरूँ। अरु रोकि नूतन कर्म संचित, कर्म रिपुकों निर्जरूँ॥ कब धन्य सुअवसर पाऊँ, जब निज में ही रम जाऊँ। कर्तादिक भेद मिटाऊँ, रागादिक दूर भगाऊँ॥ कर दूर रागादिक निरंतर, आत्म को नि...