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Showing posts with the label श्री चन्द्रप्रभ - Chandraprabhu Ji

Shri ChandaPrabhu Bagwaan | श्री चन्द्रप्रभ भगवान

परिचय  इस मध्यलोक के पुष्कर द्वीप में पूर्व मेरू के पश्चिम की ओर विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर एक ‘सुगन्धि’ नाम का देश है। उस देश के मध्य में श्रीपुर नाम का नगर है। उसमें इन्द्र के समान कांति का धारक श्रीषेण राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी धर्मपरायणा श्रीकांता नाम की रानी थी। दम्पत्ति पुत्र रहित थे अत: पुरोहित के उपदेश से पंच वर्ण के अमूल्य रत्नों से जिन प्रतिमाएँ बनवाईं, आठ प्रातिहार्य आदि से विभूषित इन प्रतिमाओं की विधिवत् प्रतिष्ठा करवाई, पुन: उनके गंधोदक से अपने आपको और रानी को पवित्र किया और आष्टान्हिकी महापूजा विधि की।  कुछ दिन पश्चात् रानी ने उत्तम स्वप्नपूर्वक गर्भधारण किया पुन: नवमास के बाद पुत्र को जन्म दिया। बहुत विशेष उत्सव के साथ उसका नाम ‘श्रीवर्मा’ रखा गया। किसी समय ‘श्रीपद्म’ जिनराज से धर्मोपदेश को ग्रहण कर राजा श्रीषेण पुत्र को राज्य देकर दीक्षित हो गया। एक समय राजा श्रीवर्मा भी आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन जिनपूजा महोत्सव करके अपने परिवारजनों के साथ महल की छत पर बैठा था कि आकस्मिक उल्कापात देखकर विरक्त होकर श्रीप्रभ जिनेन्द्र के समीप दीक्षा लेकर ...

श्री चंद्रप्रभ जिन पूजा (तिजारा) कविवर मुंशी | SHRI CHANDAPRABHU JIN POOJA(TIJARA)

SHRI CHANDAPRABHU JIN POOJA(TIJARA) / श्री चंद्रप्रभ जिन पूजा (तिजारा) कविवर मुंशी शुभ पुण्य-उदय से ही प्रभुवर! दर्शन तेरा कर पाते हैं | केवल दर्शन से ही प्रभु, सारे पाप मेरे कट जाते हैं || देहरे के चंद्रप्रभ-स्वामी! आह्वानन करने आया हूँ | मम हृदय-कमल में आ तिष्ठो! तेरे चरणों में आया हूँ || ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट् (आह्वानम्) ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् (सत्रिधिकरण) (अथाष्टक) भोगों में फँसकर हे प्रभुवर! जीवन को वृथा गँवाया है | इस जन्म-मरण से मुझे नहीं, छुटकारा मिलने पाया है || मन में कुछ भाव उठे मेरे, जल झारी में भर लाया हूँ | मन के मिथ्या-मल धोने को, चरणों में तेरे आया हूँ || ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१। निज-अंतर शीतल करने को,चंदन घिसकर ले आया हूँ | मन शांत हुआ ना इससे भी, तेरे चरणों में आया हूँ || क्रोधादि कषायों के कारण, संतप्त-हृदय प्रभु मेरा है ...

आरती – जय चंद्रप्रभु देवा | Aarti Chandaprabhu ji

जय चंद्रप्रभु देवा, स्वामी जय चंद्रप्रभुदेवा । तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी, तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी पार करो देवा, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… मात सुलक्षणा पिता तुम्हारे महासेन देवा चन्द्र पूरी में जनम लियो हैं स्वामी देवों के देवा तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… जन्मोत्सव पर प्रभु तिहारे, सुर नर हर्षाये रूप तिहार महा मनोहर सब ही को भायें तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… बाल्यकाल में ही प्रभु तुमने दीक्षा ली प्यारी भेष दिगंबर धारा, महिमा हैं न्यारी तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… फाल्गुन वदि सप्तमी को, प्रभु केवल ज्ञान हुआ खुद जियो और जीने दो का सबको सन्देश दिया तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, देहरे में प्रगटे मूर्ति तिहारी अपने अपने नैनन, निरख निरख हर्षे तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥ जय चंद्रप्रभु देवा… हम प्रभु दास तिहारे, निश दिन गुण गावें पा...

चालीसा : श्री चन्द्र प्रभु जी | Chandraprabhu Chalisa

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम। उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।। सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकर। चन्द्रपुरी के चन्द्र को, मन मंदिर में धार।। Chandraprabhu Ji in Tijara ।। चौपाई ।। जय-जय स्वामी श्री जिन चन्दा, तुमको निरख भये आनन्दा। तुम ही प्रभु देवन के देवा, करूँ तुम्हारे पद की सेवा।। वेष दिगम्बर कहलाता है, सब जग के मन भाता है। नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी, मोहनि मूरति कितनी प्यारी।। तीन लोक की बातें जानो, तीन काल क्षण में पहचानो। नाम तुम्हारा कितना प्यारा , भूत प्रेत सब करें निवारा।। तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, अष्टम तीर्थंकर कहलाओ।। महासेन जो पिता तुम्हारे, लक्ष्मणा के दिल के प्यारे।। तज वैजंत विमान सिधाये , लक्ष्मणा के उर में आये। पोष वदी एकादश नामी , जन्म लिया चन्दा प्रभु स्वामी।। मुनि समन्तभद्र थे स्वामी, उन्हें भस्म व्याधि बीमारी। वैष्णव धर्म जभी अपनाया, अपने को पण्डित कहाया।। कहा राव से बात बताऊँ , महादेव को भोग खिलाऊँ। प्रतिदिन उत्तम भोजन आवे , उनको मुनि छिपाकर खावे।। इसी तरह निज रोग भगाया , बन गई कंचन ज...

श्री चन्द्र प्रभु चालीसा (देहरा तिजारा) || SHRI CHANDA PRABHU CHALISA (DEHRA TIJARA)

 श्री चन्द्र प्रभु चालीसा (देहरा तिजारा) वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिनवाणी को ध्याय | लिखने का साहस करूँ, चालीसा सिर-नाय ||१|| देहरे के श्री चंद्र को, पूजौं मन-वच-काय || ऋद्धि-सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय ||२|| जय श्री चंद्र दया के सागर,  देहरेवाले ज्ञान-उजागर ||३|| शांति-छवि मूरति अति-प्यारी,  भेष-दिगम्बर धारा भारी ||४|| नासा पर है दृष्टि तुम्हारी,  मोहनी-मूरति कितनी प्यारी |५|| देवों के तुम देव कहावो,  कष्ट भक्त के दूर हटावो ||६|| समंतभद्र मुनिवर ने ध्याया,  पिंडी फटी दर्श तुम पाया ||७|| तुम जग में सर्वज्ञ कहावो,  अष्टम-तीर्थंकर कहलावो ||८|| महासेन के राजदुलारे,  मात सुलक्षणा के हो प्यारे ||९|| चंद्रपुरी नगरी अतिनामी,  जन्म लिया चंद्र-प्रभ स्वामी ||१०|| पौष-वदी-ग्यारस को जन्मे,  नर-नारी हरषे तब मन में ||११|| काम-क्रोध-तृष्णा दु:खकारी,  त्याग सुखद मुनिदीक्षा-धारी ||१२|| फाल्गुन-वदी-सप्तमी भाई,  केवलज्ञान हुआ सुखदाई ||१३|| फिर सम्मेद-शिखर पर जाके,  मोक्ष गये प्रभु आप वहाँ से ||१४|| लो...

||आरती चन्द्रप्रभु जी भगवान || AARATI SRI CHANDRAPRABHA JI TIJARA

 ||आरती चन्द्रप्रभु जी भगवान || म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी | म्हारे मन भाई जी, म्हारे मन भाई जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || Chandraprabhu ji in Sonagir सावन सुदि दशमी तिथि आई, प्रगटे त्रिभुवन राई जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || अलवर प्रांत में नगर तिजारा, दरसे देहरे मांही जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || सीता सती ने तुमको ध्याया, अग्नि में कमल रचाया जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || मैना सती ने तुमको ध्याया, पति का कुष्ट मिटाया जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || जिनमें भूत प्रेत नित आते, उनका साथ छुड़ाया जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || सोमा सती ने तुमको ध्याया, नाग का हार बनाया जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || मानतुंग मुनि तुमको ध्याया, ताले तोड़ छुड़ाया जी | म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई ज...

SHRI CHANDRAPRABHU JI POOJA DEHRA / श्री चंद्रप्रभु जी पूजा देहरा

SHRI CHANDRAPRABHU JI POOJA DEHRA / श्री चंद्रप्रभु जी पूजा देहरा शुभ पुण्य-उदय से ही प्रभुवर! दर्शन तेरा कर पाते हैं | केवल दर्शन से ही प्रभु, सारे पाप मेरे कट जाते हैं || देहरे के चंद्रप्रभ-स्वामी! आह्वानन करने आया हूँ | मम हृदय-कमल में आ तिष्ठो! तेरे चरणों में आया हूँ || ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट् (आह्वानम्) ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् (सत्रिधिकरण) (अथाष्टक) भोगों में फँसकर हे प्रभुवर! जीवन को वृथा गँवाया है | इस जन्म-मरण से मुझे नहीं, छुटकारा मिलने पाया है || मन में कुछ भाव उठे मेरे, जल झारी में भर लाया हूँ | मन के मिथ्या-मल धोने को, चरणों में तेरे आया हूँ || ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१। निज-अंतर शीतल करने को,चंदन घिसकर ले आया हूँ | मन शांत हुआ ना इससे भी, तेरे चरणों में आया हूँ || क्रोधादि कषायों के कारण, संतप्त-हृदय प्रभु मेरा है | शीतलता मुझको ...