Skip to main content

Posts

Showing posts with the label अर्घ-Argha

सम्मेदशिखर अर्घ | Sammed Shikhar Argha

चोपड़ा कुंड सम्मेदशिखर गिरिराज पे, चोपड़ा कुंड महान। पारस चंदा बाहुबली, पूजूं मैं धरि ध्यान। ॐ श्री सम्मेदशिखर चोपड़ा कुंड मध्ये पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, बाहुबली जिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा  || २४ तीर्थंकरो के गणधरों की कूट चौबीसों जिनराज के, गण नायक हैं जेह | मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह || ॐ ह्रीं श्री गौतम स्वामी आदि गणधर देव ग्राम के उद्यान आदि भिन्न-भिन्न स्थानों से निर्वाण पधारे हैं तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा  ||   श्री कुंथुनाथ भगवान की टोंक (ज्ञानधर कूट) कुंथुनाथ जिनराज का, कूट ज्ञानधर जेह | मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह || ॐ ह्रीं श्रीकुन्थुनाथ जिनेंद्रादि मुनि 96 कोड़ा-कोडी, 96 करोड़, 32 लाख, 96 हजार, 742 मुनि इस कूट से सिद्ध हुए, तिनके चरणारविन्द को मेरा मन, वच, काय से बारम्बार नमस्कार हो, जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||   श्री नमिनाथ स्वामी की टोंक (मित्रधर कूट) नमिनाथ जिनराज का, कूट मित्रधर जेह | मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह || ॐ ह्रीं श्र...

सिद्ध क्षेत्र अर्घावली | Siddh kshetra arghaavli

(1)   श्री अष्टापद (कैलाश) सिद्ध क्षेत्र (हिमालय पर्वत)             जल आदिक आठों द्रव्य लेय, भरि स्वर्णथार अर्घहि करेय |             जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजूँ जोरि पान || ऊँ ह्रीं श्रीकैलाश पर्वत सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा |  (2)   सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र (झारखण्ड)              जल गंधाक्षत पुष्प सु नेवज लीजिये |             दीप धूप फल लेकर अर्घ सु दीजिये ||             पूजौं शिखर सम्मेद सु-मन-वच-काय जी |             नरकादिक दुख टरें अचल पद पायजी ...

महा अर्घ | Maha Argha

-- महा अर्घ --  मैं देव श्री अरहंत पूजूँ, सिद्ध पूजूँ चाव सों । आचार्य श्री उवझाय पूजूँ, साधु पूजूँ भाव सों ॥ अरहंत भाषित वैन पूजूँ, द्वादशांग रचे गनी । पूजूँ दिगम्बर गुरुचरण, शिवहेत सब आशा हनी ॥ सर्वज्ञ भाषित धर्म दशविधि, दयामय पूजूँ सदा । जजि भावना षोडस रत्नत्रय, जा बिना शिव नहिं कदा ॥ त्रैलोक्य के कृत्रिम अकृत्रिम, चैत्य चैत्यालय जजूँ । पंचमेरु नन्दीश्वर जिनालय, खचर सुर पूजित भजूँ ॥ कैलाश श्री सम्मेदगिरि गिरनार मैं पूजूँ, सदा । चम्पापुरी पावापुरी पुनि और तीरथ सर्वदा ।। चौबीस श्री जिनराज पूजूँ, बीस क्षेत्र विदेह के । नामावली इक सहस वसु जय होय पति शिव गेह के ।। (दोहा) जल गन्धाक्षत पुष्प चुरु, दीप धूप फल लाय । सर्व पूज्य पद पूजहू बहू विधि भक्ति बढाय ॥ ऊँ ह्रीं भाव पूजा भाव वन्दना त्रिकाल पूजा त्रिकाल-वन्दना करै करावै भावना भावै  श्रीअरहंत, सिद्वजी, आचार्यजी, उपाध्यायजी, सर्वसाधुजी पंच परमेष्ठिभ्यो नमः । प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चराणानुयोग, द्रव्यानुयोगेभ्यो नमः | दर्शनविशुद्धयादि षोडश कारणेभ्यो नमः । उत्तमक्षमदि दशलक्षण धर्मेभ्योः न...