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श्री अरहनाथ जी जिन पूजा - Shree Arahnaath ji jin pooja

तप तुरंग असवार धार, तारन विवेक कर | ध्यान शुकल असिधार शुद्ध सुविचार सुबखतर || भावन सेना, धर्म दशों सेनापति थापे | रतन तीन धरि सकति, मंत्रि अनुभो निरमापे || सत्तातल सोहं सुभटि धुनि, त्याग केतु शत अग्र धरि | इहविध समाज सज राज को, अर जिन जीते कर्म अरि || ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् | ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः | ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् | कनमनिमय झारी, दृग सुखकारी, सुर सरितारी नीर भरी | मुनिमन सम उज्ज्वल, जनम जरादल, सो ले पदतल धार...

चालीसा : श्री अरहनाथ जी | Shri Arahnath Ji Chalisa

श्री अरहनाथ जिनेन्द्र गुणाकर, ज्ञान दरस सुख बल रत्नाकर । कल्पवृक्ष सम सुख के सागर, पार हुए निज आतम ध्याकर ।। अरहनाथ वसु अरि के नाशक, हुए हस्तिनापुर के शाषक । माँ मित्रसेना पिता सुदर्शन, चक्रवर्ती बन दिया दिग्दर्शन ।। सहस चौरासी आयु प्रभु की, अवगाहना थी तीस धनुष की । वर्ण सुवर्ण समान था पीत, रोग शोक थे तुमसे भीत ।। ब्याह हुआ जब प्रीत कुमार का, स्वपन हुआ साकार पिता का । राज्याभिषेक हुआ अरहजिन का, हुआ अभ्युदय चक्र रतन का ।। एक दिन देखा शरद ऋतू में, मेघ विलीन हुए क्षण भर में । उदित हुआ वैराग्य ह्रदय में, लौकंतिक सुर आये पल में ।। अरविन्द पुत्र को देकर राज, गए सहेतुक वन जिनराज । मंगसिर की दशमी उजियारी, परम दिगंबर दीक्षा धारी ।। पंचमुश्ठी उखाड़े केश, तन से ममत्व रहा नहीं दलेश । नगर चक्रपुर गए पारण हित, पड्गाहे भूपति अपराजित ।। परसुख शुद्दाहार कराये, पंचाशचर्य देव कराये । कठिन तपस्या करते वन में, लीन रहे आतम चिंतन में ।। कार्तिक मास द्वादशी उज्जवल, प्रभु विराजे आम्र वृक्ष तल । अंतर ज्ञान ज्योति प्रगटाई, हुए केवली श्री जिनराई ।। देव करे उत...