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प्रभु पतित पावन | Prabhu Patit Paavan

https://forum.jinswara.com/uploads/default/original/1X/5a08a452c07a8ac18e44603ac11188d8134a9272.mp3 प्रभु पतित पावन मैं अपावन, चरण आयो सरन जी | यों विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरन जी ||(1) तुम न पिछान्यो आन मान्यो, देव विविध प्रकार जी | या बुद्धि सेती निज ना जान्यो, भ्रम गिन्यो हितकार जी ||(2) भव विकट वन में करम बैरी, ज्ञान धन मेरो हरयो | तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होए, अनिष्ट गति धरतो फिरयो ||(3) धन घड़ी यो धन दिवस यो ही, धन जनम मेरो भयो | अब भाग्य मेरो उदय आयो, दरश प्रभु जी को लख लयो ||(4) छवि वीतरागी नगन मुद्रा, दृष्टि नासा पै धरैं | वसु प्रातिहार्य अनंत गुण जुत, कोटि रवि छवि को हरैं ||(5) मिट गयो तिमिर मिथ्यात मेरो, उदय रवि आतम भयो | मो उर हरष ऐसो भयो, मनु रंक चिंतामणि लयो ||(6) मैं हाथ जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊँ तुव चरन जी | सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारन तरन जी ||(7) जाचूँ नहीं सुरवास पुनि, नर राज परिजन साथ जी | 'बुध' जाचहूँ तुव भक्ति भव भव, दीजिये शिवनाथ जी ||(8) रचयिता - श्री बुधजन जी