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शान्ति विधान - Shanti vidhaan

श्री शान्तिनाथ विधान भाषा (हिन्दी) प्रस्तावना अरिहन्त जिनेश्वर की अनुपम छवि, शान्ति सुधा धर के उर में। शिवनाथ निरंजन कर्मजयी बन, जाय बसे प्रभु शिवपुर में॥१॥ मुनिनाथ तपोनिधि सूरि सुधी, तपलीन रहें नित ही वन में। श्रुत-ज्ञान-सुधा बरसावत हैं गुरु पाठकवृन्द सुभव्यन में॥ २॥ रत्नत्रय की चिर ज्योति जगे, तप-ज्वाला कर्म विनाश करे। भव-भोग शरीर विरक्त सदा, इन्द्रिय सुख की नहिं आश करें॥ ३॥ गन्धकुटी में विराजित प्रभु हैं, दिव्य ध्वनि उनकी तो खिरी। गणराज ने गंूथ के ज्ञान-सुमन, द्वादश अंगों की माल वरी॥ ४॥ मंगलमय लोक जिनोत्तम हैं, मंगलमय सिद्ध सनातन हैं। मंगलमय सूरि सुवृत्त धनी, मंगलमय पाठक के गन हैं॥ ५॥ मंगलमय हैं साधु जन, ज्ञान सुधा रस लीन। जिन प्रणीत वर धर्म है, मंगलमय स्वाधीन॥ ६॥ सब द्वीपों के मध्य में, जम्बू द्वीप अनूप। लवण नीर-निधि सर्वत:,जहाँ खातिका-रूप॥ ७॥ पीछे धातकि-द्वीप है, दुतिय द्वीप श्रुति सार। कालोदधि चहुँ ओर है, परिखा के उनहार॥ ८॥ पुष्कर नामक द्वीप है, कालोदधि के पार। ताको आ...