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एकीभाव-स्तोत्र (भाषानुवाद) || EKIBHAV STOTRA (BHASHANUWAAD)

कविश्री भूध्ररदास एकीभाव संस्कृत-स्तोत्र के रचयिता आचार्य श्री वादिराज हैं। आपकी गणना महान् आचार्यों में की जाती है। आप महान् वाद-विजेता और कवि थे। आपकी पार्श्वनाथ-चरित्र, यशोधर-चरित्र, एकीभाव-स्तोत्र, न्याय-विनिश्चिय-विवरण, प्रमाण-निर्णय ये पाँच कृतियाँ प्रसिद्ध हैं। आपका समय विक्रम की 11वीं शताब्दी माना जाता है। आपका चौलुक्य-नरेश जयसिंह (प्रथम) की सभा में बड़ा सम्मान था। ‘वादिराज’ यह नाम नहीं वरन् पदवी है। प्रख्यात वादियों में आपकी गणना होने से आप ‘वादिराज’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। निस्पृही आचार्य श्री वादिराज ध्यान में लीन थे। कुछ द्वेषी-व्यक्तियों ने उन्हें कुष्ट-ग्रस्त देखकर राजसभा में जैन मुनियों का उपहास किया, जिसे जैनधर्म प्रेमी राजश्रेष्ठी सहन न कर सके और भावावेश में कह उठे कि हमारे मुनिराज की काया तो स्वर्ण जैसी सुन्दर होती है। राजा ने अगले दिन मुनिराज के दर्शन करने का विचार रखा। सेठ ने मुनिराज से सारा विवरण स्पष्ट कहकर धर्मरक्षा की प्रार्थना की। मुनिराज ने धर्मरक्षा और प्रभावना हेतु ‘एकीभाव स्तोत्र‘ की रचना की जिससे उनका शरीर वास्तव में स्वर्ण-सदृश हो गया। राजा ने मुनिर...

भूपाल चतुर्विंशतिका (हिन्दी) || BHUPAL CHATURVINSHATIKA (HINDI

कविश्री भूधरदास मूल संस्कृत-काव्य कवि भूपाल की रचना है। इसमें अलंकार की अनुपम-छटा छिटक रही है। भूपाल 11-12वीं शताब्दी के उच्चकोटि के कवि हैं। उनका अधिक परिचय प्राप्त नहीं है। इस हिंदी अनुवाद का उपकार कविश्री भूधरदास द्वारा हुआ है। (दोहा) सकल सुरासुर-पूज्य नित, सकलसिद्धि-दातार| जिन-पद वंदूँ जोर कर, अशरन-जन-आधार ||१|| (चौपाई) श्री सुख-वास-मही कुलधाम, कीरति-हर्षण-थल अभिराम | सरसुति के रतिमहल महान्, जय-जुवती को खेलन-थान || अरुण वरण वाँछित वरदाय, जगत्-पूज्य ऐसे जिन पाय | दर्शन प्राप्त करे जो कोय, सब शिवनाथ सो जन होय ||१|| निर्विकार तुम सोम शरीर, श्रवण सुखद वाणी गभ्भीर | तुम आचरण जगत् में सार, सब जीवन को है हितकार || महानिंद भव मारु देश, तहाँ तुंग तरु तुम परमेश | सघन-छाँहि-मंडित छवि देत, तुम पंडित सेवें सुख-हेत ||२|| गर्भकूपतें निकस्यो आज, अब लोचन उघरे जिनराज | मेरो जन्म सफल भयो अबै, शिवकारण तुम देखे जबै || जग-जन-नैन-कमल-वनखंड, विकसावन शशि शोक विहंड | आनंदकरन प्रभा तुम तणी, सोई अमी झरन चाँदणी ||३|| सब सुरेन्द्र शेखर शुभ रैन, तुम आसन तट मा...