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Showing posts with the label Stories - कथा

Queen Chelna and King Shrenik | Jain Story

 This is a story from the time of Bhagwan Mahavir. At that time, king Chetak was the ruler of Vaishali and he had a beautiful daughter named Chelna. Once an artist called Bharata painted a picture of Chelna and showed it to king Shrenik of Magadh. Charmed by Chelna's beauty, Shrenik fell in love with her.  One day Chelna came to the city of Magadh where she saw king Shrenik and she also fell in love with him. They soon got married. Queen Chelna was a devoted follower of Jainism, while Shrenik was influenced by Buddhism. After marriage, she got to know that king Shrenik was not a follower of Jainism. She started crying so king asked him the reason. After a long discussion, king Shrenik gave her the permission to follow whatever she wants. She started following and promoting Jainism fearlessly. The effect of Jainism could be seen in the whole town. Some Buddhist teachers got to know this and feared what if she made the whole town Jain. They went to the king and asked him to inst...

Elephant and the Blind Men | Jain stories

Once upon a time, there lived six blind men in a village. One day the villagers told them, "Hey, there is an elephant in the village today." They had no idea what an elephant is. They decided, "Even though we would not be able to see it, let us go and feel it anyway." All of them went where the elephant was. Every one of them touched the elephant. "Hey, the elephant is a pillar," said the first man who touched his leg. "Oh, no! It is like a rope," said the second man who touched the tail. "Oh, no! It is like a thick branch of a tree," said the third man who touched the trunk of the elephant. "It is like a big hand fan" said the fourth man who touched the ear of the elephant. "It is like a huge wall," said the fifth man who touched the belly of the elephant. "It is like a solid pipe," Said the sixth man who touched the tusk of the elephant. They began to argue about the elephant and every one of them insiste...

विष्णुकुमार रक्षा बंधन पर्व कथा || Jain Vishnu Kumar Muni Raksha bandhan festival story

रक्षाबंधन पर्व जैन समुदाय द्वारा हर्षपूर्वक मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन विष्णु कुमार मुनिराज ने ७०० मुनियों पर हो रहे उपसर्ग को दूर किया था। जैन धर्म में रक्षाबंधन इसी कारण से मनाया जाता है। जैन धर्म के 19 वें तीर्थंकर भगवान मल्लिनाथ स्वामी के समय में हस्तिनापुर में महापद्म नामक चक्रवर्ती का राज्य था तथा उनकी रानी लक्ष्मी मति थी. उसके दो पुत्र विष्णुकुमार और पद्म थे| जब राजा महापद्म को संसार भोगो के प्रति वैराग्य हुआ, तब उन्होंने दीक्षा लेने का विचार किया| फिर राजा ने अपना राज्य अपने बड़े पुत्र को देने का निश्चय किया, तो विष्णु कुमारजी ने राज्य लेने से मना कर दिया| विष्णु कुमारजी ने अपने पिताजी पूछा कि आप यह चक्रवर्ती का पद, छह खंड का साम्राज्य, पूरा भरत क्षेत्र क्यों छोड़ रहे हो? तब राजा महापद्म ने कहा कि अब मैं जान गया हूँ कि इस संसार में सार नहीं है| तब फिर विष्णु कुमारजी ने पूंछा कि जब इस संसार में कोई सार नहीं है और आप स्वयं भी जब इस संसार को छोड़ रहे है, तो क्या आपको इस तरह की असार वस्तु को अपने बेटे को भेंट करना चाहिए? जो सच्चे पिता होते हैं, वो अपने बेटे को अच्छी चीज़ ह...

श्रुत पंचमी पर्व कथा | Shrut Panchami parva katha

 वीर निर्वाण संवत 614 में आचार्य धरसेन काठियावाड स्थित गिरिनगर (गिरनारपर्वत) की चन्द्रगुफा में रहते थे। जब वे बहुत वृद्ध हो गये थे और अपना जीवन अल्प जाना, तब श्रुत की रक्षार्थ उन्होंने महिमानगरी में एकत्रित मुनिसंघ के पास एक पत्र भेजा। तब मुनि संघ ने पत्र पढ कर दो मुनियों को गिरनार भेज दिया। वे मुनि विद्याग्रहण करने में तथा उनका स्मरण रखने में समर्थ, अत्यंत विनयी, शीलवान तथा समस्त कलाओं मे पारंगत थे। जब वे दोनों मुनि गिरिनगर की ओर जा रहे थे तब धरसेनाचार्य ने एक स्वप्न देखा कि दो वृषभ आकर उन्हें विनयपूर्वक वन्दना कर रहे हैं। उस स्वप्न से उन्होंने जान लिया कि आने वाले दो मुनि विनयवान एवं धर्मधुरा को वहन करने में समर्थ हैं। तब उनके मुख से अनायास ही “जयदु सुय देवदा” अर्थात् श्रुत की जय हो ऐसे आशीर्वादात्मक वचन निकल पडे। । दूसरे दिन दोनों मुनिवर वहाॅ आ पहुॅचे और विनय पूर्वक उन्होंने आचार्य के चरणों में वंदना की। दो दिन पश्चात श्रीधरसेनाचार्य ने विद्यामंत्र देकर उनकी परीक्षा की। एक को अधिकाक्षरी मंत्र (एक अक्षर अधिक वाला) और दूसरे को हीनाक्षरी (एक अक्षर न्यून वाला) विद्यामंत्र देकर उपवास...

अकलंक निकलंक देव द्वारा जैन धर्म की प्रभावना || Jain Muni Akalank and Nikalank dev story

भारत वर्ष में एक मान्‍यखेट नाम का नगर था। उसके राजा थे शुभतुंग और उनके मंत्री का नाम पुरूषोत्‍तम था । पुरूषोत्तम की गृहिणी पद्मावती थी। उसके दो पुत्र हुए। उनके नाम थे अकलंक और निकलंक। वे दोनों भाई बड़े बुद्धिमान-गुणी थे।  एक दिन अष्‍टाह्निका पर्व की अष्‍टमी के दिन पुरूषोत्‍तम और उसकी गृहिणी बड़ी विभूति के साथ चित्रगुप्‍त मुनिराज की वन्‍दना करने गए। साथ में दोनों भाई भी गये। मुनिराज की वन्‍दना कर इनके माता-पिता ने आठ दिन के लिये ब्रह्मचर्य व्रत लिया और साथ ही विनोदवश अपने दोनों पुत्रों को भी उन्‍होंने ब्रह्मचर्य व्रत दे दिया।  कुछ दिनों के बाद पुरूषोत्‍तम ने अपने पुत्रों के ब्याह का आयोजन किया। यह देख दोनों भाइयों ने मिलकर पिता से कहा—पिता जी, इतना भारी आयोजन! इतना परिश्रम आप किस लिये कर रहे हैं? अपने पुत्रों की बात सुनकर पुरूषोत्‍तम ने कहा — यह सब आयोजन तुम्‍हारे ब्‍याह के लिये है। पिता का उत्‍तर सुनकर दोनों भाईयों ने फिर कहा—पिता जी अब हमारा ब्याह कैसा? आपने तो हमें ब्रह्मचर्य  व्रत दे दिया था न? पिता ने कहा नहीं, वह तो केवल विनोद से दिया गया था। उन बुद्धिमान् भाइयों ने क...

मुकुट सप्तमी | मोक्ष सप्तमी पर्व कथा | Mukut saptami && Moksha saptami parva katha

जम्बूद्वीप के कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नगर है। वहाँ के राजा विजयसेन की रानी विजयावती से मुकुटशेखरी और विधिशेखरी नाम की दो कन्याएँ थीं। इन दोनों बहनों में परस्पर ऐसी प्रीति थी कि एक दूसरी के बिना क्षण भर भी नहीं रह सकती थीं। निदान राजा ने ये दोनों कन्याएँ अयोध्या के राजपुत्र त्रिलोकमणि को ब्याह दी। एक दिन बुद्धिसागर और सुबुद्धिसागर नाम के दो चारणऋषि आहार के निमित्त नगर में आये।  राजा ने उन्हें विधिपूर्वक पड़गाहकर आहार दिया और धर्मोपदेश श्रवण करने के अनंतर राजा ने पूछा-हे नाथ! मेरी इन दोनों पुत्रियों में परस्पर इतना विशेष प्रेम होने का कारण क्या है? तब श्री ऋषिराज बोले-इसी नगर में धनदत्त नामक एक सेठ था, उनके जिनवती नाम की एक कन्या थी और वहीं एक माली की वनमती कन्या भी थी, इन दोनों कन्याओं ने मुनि के द्वारा धर्मोपदेश सुनकर मुकुटसप्तमी व्रत ग्रहण किया था। एक समय ये दोनों कन्याएँ उद्यान में खेल रही थीं (मनोरंजन कर रही थीं) कि इन्हें सर्प ने काट लिया, दोनों कन्याएँ णमोकार मंत्र का आराधन करके देवी हुई और वहाँ से चयकर तुम्हारी पुत्री हुई हैं। तभी से इनका यह स्नेह भवांतर से चला आ रहा है।...