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कल्याण मन्दिर स्तोत्र पद्यानुवाद || Shri Kalyan Mandir Stotra translation

 अनुपम करुणा की सु-मूर्ति शुभ, शिव मन्दिर अघनाशक मूल । भयाकुलित व्याकुल मानव के, अभयप्रदाता अति- अनुकूल ॥ बिन कारन भवि जीवन तारन, भवसमुद्र में यान-समान। ऐसे पद्मप्रभु पारस, के पद अर्चू मैं नित अम्लान॥१॥ जिसकी अनुपम गुणगरिमा का, अम्बुराशि सा है विस्तार | यश-सौरभ सु-ज्ञान आदि का, सुरगुरु भी नहिं पाता पार ॥ हठी कमठ शठ के मदमर्दन, को जो धूमकेतु-सा शूर । अति आश्चर्य कि स्तुति करता, उसी तीर्थपति की भरपूर ॥२॥ अगम अथाह सुखद शुभ सुन्दर, सत्स्वरूप तेरा अखिलेश ! क्यों कर कह सकता है मुझसा, मन्दबुद्धि मूरख करुणेश ! ॥ सूर्योदय होने पर जिसको, दिखता निज का गात नहीं । दिवाकीर्ति क्या कथन करेगा, मार्तण्ड का नाथ ! कहीं ? ॥३ ॥ यद्यपि अनुभव करता है नर, मोहनीय - विधि के क्षय से । तो भी गिन न सकेँ गुण तुव सब, मोहेतर कर्मोदय से ॥ प्रलयकाल में जब जलनिधि का, बह जाता है सब पानी । रत्नराशि दिखने पर भी क्या, गिन सकता कोई ज्ञानी ? ॥४ ॥ तुम अतिसुन्दर शुद्ध अपरिमित, गुणरत्नों की खानिस्वरूप । वचननि करि कहने को उमगा, अल्पबुद्धि मैं तेरा रूप ॥ यथा मन्दमति लघुशिशु अपने, दोऊ कर को कहै पसार । जल - निधि को देखहु रे मानव...

एकीभाव-स्तोत्र (भाषानुवाद) || EKIBHAV STOTRA (BHASHANUWAAD)

कविश्री भूध्ररदास एकीभाव संस्कृत-स्तोत्र के रचयिता आचार्य श्री वादिराज हैं। आपकी गणना महान् आचार्यों में की जाती है। आप महान् वाद-विजेता और कवि थे। आपकी पार्श्वनाथ-चरित्र, यशोधर-चरित्र, एकीभाव-स्तोत्र, न्याय-विनिश्चिय-विवरण, प्रमाण-निर्णय ये पाँच कृतियाँ प्रसिद्ध हैं। आपका समय विक्रम की 11वीं शताब्दी माना जाता है। आपका चौलुक्य-नरेश जयसिंह (प्रथम) की सभा में बड़ा सम्मान था। ‘वादिराज’ यह नाम नहीं वरन् पदवी है। प्रख्यात वादियों में आपकी गणना होने से आप ‘वादिराज’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। निस्पृही आचार्य श्री वादिराज ध्यान में लीन थे। कुछ द्वेषी-व्यक्तियों ने उन्हें कुष्ट-ग्रस्त देखकर राजसभा में जैन मुनियों का उपहास किया, जिसे जैनधर्म प्रेमी राजश्रेष्ठी सहन न कर सके और भावावेश में कह उठे कि हमारे मुनिराज की काया तो स्वर्ण जैसी सुन्दर होती है। राजा ने अगले दिन मुनिराज के दर्शन करने का विचार रखा। सेठ ने मुनिराज से सारा विवरण स्पष्ट कहकर धर्मरक्षा की प्रार्थना की। मुनिराज ने धर्मरक्षा और प्रभावना हेतु ‘एकीभाव स्तोत्र‘ की रचना की जिससे उनका शरीर वास्तव में स्वर्ण-सदृश हो गया। राजा ने मुनिर...