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Showing posts with the label जुगल किशोर 'युगल'-Jugal kishor Ji 'Yugal’

|| देव शास्र गुरु पूजा || (केवल-रवि-किरणों )-कविश्री युगलजी बाबू जी - Dev Shastra Pooja - Kavi Yugal Kishor Ji Keval ravi kirano se

|| देव शास्र गुरु पूजा || कविश्री युगलजी बाबू जी केवल-रवि-किरणों से जिसका, सम्पूर्ण प्रकाशित है अंतर| उस श्री जिनवाणी में होता, तत्वों का सुन्दरतम दर्शन|| सद्दर्शन-बोध-चरण-पथ पर, अविरल जो बढ़ते हैं मुनिगण| उन देव-परम-आगम गुरु को, शत-शत वंदन शत-शत वंदन ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरु समूह! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट् (आह्वाननम्)। ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरु समूह! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्)। ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरु समूह! अत्र मम सन्निहितो भव! भव! वषट्! (सन्निधिकरणम्)। इन्द्रिय के भोग मधुर विष सम, लावण्यमयी कंचन काया| यह सब कुछ जड़ की क्रीड़ा है, मैं अब तक जान नहीं पाया|| मैं भूल स्वयं के वैभव को, पर-ममता में अटकाया हूँ | अब निर्मल सम्यक्-नीर लिये, मिथ्यामल धोने आया हूँ || ओं ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। जड़-चेतन की सब परिणति प्रभु! अपने-अपने में होती है| अनुकूल कहें प्रतिकूल कहें, यह झूठी मन की वृत्ति है|| प्रतिकूल संयोगों में क्रोधित, होकर संसार बढ़ाया है| संतप्त-हृदय प्रभु! चंदन-सम, श...

अमूल्य तत्व विचार | Amulya Tatva Vichar

(श्री युगल जी कृत) बहु पुण्य-पुंज प्रसंग से शुभ देह मानव मिला | तो भी अरे! भव चक्र का, फेरा न एक भी टला ||१|| सुख प्राप्ति हेतु प्रयत्न करते, सुक्ख जाता दूर हैं | तू क्यों भयंकर भाव-मरण, प्रवाह में चकचूर हैं ||२|| लक्ष्मी बढ़ी अधिकार भी, पर बढ़ गया क्या बोलिये | परिवार और कुटुंब हैं क्या? वृद्धिनय पट तोलिये ||३|| संसार का बढ़ना अरे! नर देह की यह हार हैं | नहिं एक क्षण तुझको अरे! इसका विवेक विचार हैं ||४|| निर्दोष सुख निर्दोष आनंद, लो जहाँ भी प्राप्त हो | यह दिव्य अन्ततत्व जिससे, बन्धनों से मुक्त हो ||५|| पर वस्तु में मुर्छित न हो, इसकी रहे मुझको दया | वह सुख सदा ही त्याज्य रे! पश्चात् जिसके दुःख भरा ||६|| मैं कौन हु? आया कहाँ से? और मेरा स्वरूप क्या? सम्बन्ध दुखमय कौन हैं? स्वीकृत करूँ परिहार क्या ||७|| इसका विचार विवेकपूर्वक, शांत होकर कीजिये | तो सर्व आत्मिक ज्ञान के, सिद्धांत का रस पीजिये ||८|| किसका वचन उस तत्व की, उपलब्धि में शिवभुत हैं | निर्दोष नर का वचन रे! वह स्वानुभूति प्रसुत हैं ||९|| तारो अरे! तारो निजात्मा, शीघ्र अनु...

दर्शन पाठ हिंदी । Darshan Path Hindi

दर्शन श्री देवाधिदेव का, दर्शन पाप विनाशन है। दर्शन है सोपान स्वर्ग का, और मोक्ष का साधन है।। श्री जिनेंद्र के दर्शन औ, निर्ग्रन्थ साधु के वंदन से। अधिक देर अघ नहीं रहै, जल छिद्र सहित कर में जैसे।। वीतराग मुख के दर्शन की, पद्मराग सम शांत प्रभा। जन्म-जन्म के पातक क्षण में, दर्शन से हों शांत विदा।। दर्शन श्री जिन देव सूर्य, संसार तिमिर का करता नाश। बोधि प्रदाता चित्त पद्म को, सकल अर्थ का करे प्रकाश।। दर्शन श्री जिनेंद्र चंद्र का, सदधर्मामृत बरसाता। जन्म दाह को करे शांत औ, सुख वारिधि को विकसाता।। सकल तत्व के प्रतिपादक, सम्यक्त्व आदि गुण के सागर। शांत दिगंबर रूप नमूँ, देवाधिदेव तुमको जिनवर।। चिदानंदमय एक रूप, वंदन जिनेंद्र परमात्मा को। हो प्रकाश परमात्म नित्य, मम नमस्कार सिद्धात्मा को।। अन्य शरण कोई न जगत में, तुम हीं शरण मुझको स्वामी। करुण भाव से रक्षा करिए, हे जिनेश अंतर्यामी।। रक्षक नहीं शरण कोई नहिं, तीन जगत में दुख त्राता। वीतराग प्रभु-सा न देव है, हुआ न होगा सुखदाता।। दिन दिन पाऊँ जिनवर भक्ति, जिनवर भक्ति जिनवर भक्ति। सदा मिले वह सदा मिले, जब तक न मिले मुझको मुक...