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श्री नन्दीश्वर द्वीप (अष्टाह्निका पर्व) पूजन - Shri Nandishwara Dweep Puja

|| श्री नन्दीश्वर द्वीप (अष्टाह्निका पर्व) पूजन ||

सरब-परव में बड़ो अठाई परव है |
नंदीश्वर सुर जाहिं लेय वसु दरब है ||
हमें सकति सो नाहिं इहाँ करि थापना |
पूजें जिनगृह-प्रतिमा है हित आपना ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षुविद्यमान द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षुविद्यमान द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षुविद्यमान द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)

कंचन मणि मय भृंगार, तीरथ नीर भरा |
तिहुँ धार दई निरवार, जामन मरन जरा ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

भव तप हर शीतल वास, जो चंदन नाहीं |
प्रभु यह गुन कीजै साँच, आयो तुम ठाहीं ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

उत्तम-अक्षत जिनराज, पुंज धरे सोहे |
सब जीते अक्ष समाज, तुम सम अरु को है ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।

तुम कामविनाशक देव, ध्याऊँ फूलन सों |
लहुँ शील लच्छमी एव, छूटूं सूलन सों ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

नेवज इंद्रिय-बलकार, सो तुमने चूरा |
चरु तुम ढिंग सोहे सार, अचरज है पूरा ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

दीपक की ज्योति प्रकाश, तुम तन माहिं लसे |
टूटे करमन की राश, ज्ञान कणी दरसे ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

कृष्णागरु धूप सुवास, दश दिशि नारि वरें |
अति हरष भाव परकाश, मानों नृत्य करें ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

बहुविधि फल ले तिहुँ काल, आनंद राचत हैं |
तुम शिव फल देहु दयाल, तुहि हम जाचत हैं ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पुंज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

यह अरघ कियो निज हेत, तुमको अरपतु हूँ |
“द्यानत” कीज्यो शिव खेत भूमि समरपतु हूँ ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।

जयमाला
(दोहा)
कार्तिक फाल्गुन साढ़ के, अंत-आठ-दिन माँहिं |
नंदीश्वर सुर जात हैं, हम पूजें इह ठाहिं ||१||
(लक्ष्मी छंद)

एक सौ त्रेसठ कोडि जोजन महा |
लाख चौरासिया एक-दिश में लहा ||
आठमों द्वीप नंदीश्वरं भास्वरं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||२||

चार-दिशि चार अंजनगिरी राजहीं |
सहस-चौरासिया एक दिशि छाजहीं ||
ढोल सम गोल ऊपर तले सुन्दरं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ।।3।।

एक इक चार दिशि चार शुभ बावरी |
एक इक लाख जोजन अमल-जल भरी ||
चहुँ दिशा चार वन लाख जोजन वरं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||४||

सोल वापीन मधि सोल-गिरि दधिमुखं |
सहस दश महाजोजन लखत ही सुखं ||
बावरी कोण दो माँहि दो रतिकरं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||५||

शैल-बत्तीस इक सहस जोजन कहे |
चार सोलै मिलैं सर्व बावन लहे ||
एक-इक सीस पर एक जिनमंदिरं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||६||

बिंब अठ एक सौ रतनमयि सोहहीं |
देव देवी सरब नयन मन मोहहीं ||
पाँचसै धनुष तन पद्म-आसन परं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||७||

लाल नख-मुख नयन स्याम अरु स्वेत हैं |
स्याम-रंग भौंह सिर-केश छवि देत हैं ||
वचन बोलत मनों हँसत कालुष हरं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||८||

कोटि-शशि-भानु-दुति-तेज छिप जात है |
महा-वैराग-परिणाम ठहरात है ||
वयन नहिं कहें, लखि होत सम्यक्धरं |
भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||९||

(सोरठा छन्द)
नंदीश्वर-जिन-धाम, प्रतिमा-महिमा को कहे |
‘द्यानत’ लीनो नाम, यही भगति शिव-सुख करे।।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिशु द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

।। इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।

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