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SRUTPANCHAMI POOJA / श्रुतपंचमी पूजा

SRUTPANCHAMI POOJA / श्रुतपंचमी पूजा
कवियत्री अरुणा जैन ‘भारती’
स्थापना : कुसुमलता छंद

सरस्वती की पूजा करने, श्री जिनमंदिर आये हम |
भव्य-भारती की पूजाकर, जीवन सफल बनाएं हम ||
श्रुत के आराधन से मन में, ज्ञान की ज्योति जलाएं अब |
पर्यायों को कर विनष्ट अब, निजस्वरूप को पायें सब ||
कर रहे आह्वान मात का, दृढ़ता हमको दे देना |
सदा रहे बस ध्यान आपका, ये ही सबक सिखा देना ||
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत षट्खंडागम! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (आह्वाननम्)!
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत षट्खंडागम! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत षट्खंडागम! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)

(जोगीरासा)

प्रासुक निर्मल नीर लिये, प्रभु का अभिषेक करायें |
गंधोदक निज शीश धारकर, प्रभुवाणी चित्त लायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

शीतल और सुवासित चंदन, केसर संग घिसायें |
जिनवाणी का अर्चन करके, अंतर ताप मिटायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

चंद्रकांति-सम उज्ज्वल अक्षत, लेकर पुंज बनायें |
श्री जिन आगम पूजन करके, अक्षय पद पा जायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।

महासुगंधित पुष्प मनोहर, चुन-चुनकर ले आयें |
शारदा माँ को भेंट चढ़ाकर, कामवेग विनशायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

षट्ररस मय नैवेद्य बनाकर, श्रुत अर्चन को लायें |
श्री जिनवर से करें प्रार्थना, क्षुधा रोग नश जायें |
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

सुरभित गौघृत शुद्ध भराकर, रतनन दीप जलायें |
अंतर मन भी आलोकित हो, यही भावना भायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

दशविध निर्मल गंध मिलाकर, चंदन चूर्ण बनायें |
अष्टकर्म दुर्गन्ध दूरकर, आतम को महकायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

मधुर रसीले श्रीफल, लेकर भारती भेंट चढायें |
संयम, त्याग का पालन करके, मनुज जन्म फल पायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

आकर्षक मनहारी सुन्दर, वेष्टन नया बनायें |
सब ग्रंथों को करें सुरक्षित, धारा ज्ञान बहायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत-षट्खंडागमाय नवीन वेष्टन समर्पयामीति स्वाहा ।९।

जल से फल तक अष्ट द्रव्य ले, वागीश्वरि गुण गायें |
अर्घ्य चढ़ाकर पद अनर्घ्य की, प्राप्ति करें सुख पायें ||
श्रुतपंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें |
चारों अनुयोगों की पूजन, करके मन हर्षायें ||
ॐ ह्रीं श्रीषट्खंडागमाय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१०।

तीर्थंकर गणधर मुनिवर को, झुक-झुक शीश नवायें |
जिनवाणी से अंतर्मन का, कर्मकलुष धो जायें ||

जयमाला

(कुसुमलता छंद)

श्री धरसेनाचार्य गुरु ने, दो शिष्यों को दिया सुज्ञान |
भूतबली अरु पुष्पदंत थे, दोनों शिष्य महागुणवान ||१||

षट्खंडागम की रचना कर, प्रभुवाणी को अमर किया |
गजरथ पर आरूढ़ कराकर, सादर श्रुत को नमन किया ||२||

अंकलेश्वर वह परमधाम है, जहाँ ये उत्सव पूर्ण हुआ |
द्वादशांग में किया समाहित, स्याद्वाद का चूर्ण महा ||३||

शुक्ल पंचमी ज्येष्ठ मास की, पावन पर्व मनाते हैं |
श्रुत का पूजन अर्चन करके, शुद्धातम गुण गाते हैं ||४||

मंगलाचरण लिखा है गुरु ने, जो भी षट्खंडागम में |
णमोकार यह महामंत्र है, पूजित हुआ सकलजग में ||५||

घर-घर पाठ करें नर-नारी, बच्चे भी कंठस्थ करें |
निजपद पाने को मुनिवर भी, मंत्र में ही ध्यानस्थ रहें ||६||

वेष्टन नया चढ़ाकर इस दिन, श्रुत की पूजा करते हैं |
सब ग्रंथों को धूप दिखाकर, उनकी रक्षा करते हैं ||७||

सदा करें श्रुत का आराधन, आत्मसाधना करने को |
होंय निराकुल अंत समय में, कर्म कालिमा हरने को ||८||

दर्शन ज्ञान चरित तप द्वारा, चारों आराधन पायें |
अन्त में आत्मज्ञान कर ‘अरुणा’, मरण समाधि कर जायें ||९||
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुत-षट्खंडागमाय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

(दोहा)

श्रुतपंचमी के पर्व पर, करें जो श्रुत-अभ्यास |
अनुभव में स्वातम मिले, अन्त-समय सन्यास ||
।। इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।

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