पूर्व नाम - श्री विद्याधरजी।
पिताश्री - श्री मल्लप्पाजी अष्टगे (मुनिश्री मल्लिसागरजी)
माताश्री - श्रीमती श्रीमंतीजी (आर्यिकाश्री समयमतिजी)
भ्राता - श्री महावीर प्रसाद, अनंतनाथ, शांतिनाथ।
बहन - शांता, सुवर्णा।
जन्म स्थान - चिक्कोड़ी (ग्राम- सदलगा के पास), बेलगांव (कर्नाटक)
जन्मतिथि - आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) वि.सं. 2003, 10-10-1946, गुरुवार, रात्रि में 12.30 बजे।
जन्म नक्षत्र - उत्तरा भाद्रपद।
मातृभाषा - कन्नड़।
शिक्षा - 9वीं मैट्रिक (कन्नड़ भाषा में) (ग्राम बेडकीहाल)
ब्रह्मचर्य व्रत - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चूलगिरि (खानियाजी), जयपुर (राजस्थान)
प्रतिमा व्रत - 1967 में श्रवणबेलगोला में श्री बाहुबली भगवान के महामस्ताकाभिषेक के समय आप आचार्य संघ के साथ पदयात्रा करते हुए वहाँ पहुंचे और वहीं आपने आचार्य श्री देशभूषण जी से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये।
मुनि दीक्षा स्थल - अजमेर (राजस्थान)
मुनि दीक्षा तिथि - आषाढ़ शुक्ल पंचमी, वि.सं. 2025, 30-06-1968, रविवार।
आचार्य पद तिथि - मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया- वि.सं. 2029, दिनांक 22-11-1972, बुधवार
आचार्य पद स्थल - नसीराबाद (राजस्थान) में, आचार्य श्री ज्ञानसागरजी ने अपना आचार्य पद प्रदान किया।
महाकाव्य - मूकमाटी
आचार्य विद्यासागर जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे। आचार्य विद्यासागर को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था। उनके भाई सभी घर के लोग संन्यास ले चुके हैं। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाये।उनके बङे भाई भी उनसे दीक्षा लेकर मुनि उत्कृष्ट सागर जी महाराज कहलाए|
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है। आचार्य विद्यासागर कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर के शिष्य मुनि क्षमासागर ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
साहित्य सर्जन
हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि में एक दर्जन से अधिक मौलिक रचनाएँ प्रकाशित- 'नर्मदा का नरम कंकर', 'डूबा मत लगाओ डुबकी' , 'तोता रोता क्यों ?' , 'मूक माटी' आदि काव्य कृतियां ; गुरुवाणी , प्रवचन परिजात, प्रवचन प्रमेय आदि प्रवचन संग्रह; आचार्य कुंदकुंद के समयासार, नियमसार , प्रवचनसार और जैन गीता आदि ग्रंथों का पद्य अनुवाद
शिष्य गण
आचार्य श्री द्वारा 130 मुनिराजो , 172 आर्यिकाओं व 20 ऐलक जी ,14 क्षुल्लकगणों को दीक्षित किया गया है | मुनिश्री समयसागर जी,मुनिश्री योगसागर जी, मुनिश्री नियमसागर जी,मुनिश्री सुधासागर जी, मुनिश्री प्रमाणसागर जी, मुनिश्री चिन्मयसागर जी,मुनिश्री अभयसागर जी, मुनि क्षमासागर जी,मुनि प्रणम्यसागर जीआदि प्रसिध्द संत है | 2001 के आँकड़ों के अनुसार उनके लगभग 21% दिगम्बर साधु आचार्य विद्यासागर के आज्ञा से चर्या करते हैं।
समाधि-
छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ में संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज का 18 फरवरी 2024 को 2:35 AM पर सल्लेखना व्रत द्वारा समतापूर्वक समाधिमरण हुआ ।
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