वीतराग सर्वग्य हितंकर, भविजन को पूरो आस |
ज्ञान भानु क उदय करो, मम मिथ्यातम क होय विनास ||1||
जीवों की हम करुणा, झूत वचन नहीं कहें कदा |
परधन कबहूँ न हरहूँ न स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा ||2||
तृष्णा लोभ बढ़े न मेरा, तोष सुधा नित पिया करें |
श्री जिनधर्म हमारा प्यारा, तिस की सेवा किया करें ||3||
दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार |
मेल मिलाप बढावें हम सब, धर्मोंन्नति का करें प्रचार ||4||
सुख-दुःख में हम समता धारें, रहें अचल जिमि सदा अटल |
न्यायमार्ग को लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतमबल ||5||
अष्ट करम जो दुःख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय |
नाम आपका जपें निरंतर, विघ्न शोक सब ही टल जाए ||6||
आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप-मैल नहिं चढ़े कदा |
विद्या की हो उन्नति हम में, धर्म ज्ञान हू बढ़े सदा ||7||
हाथ जोडकर शीश नवायें, तुम को भविजन खड़े-खड़े |
यह सब पूरो आस हमारी, चरण-शरण में आन पड़े ||8||
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