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सम्मेदशिखर अर्घ | Sammed Shikhar Argha

चोपड़ा कुंड

सम्मेदशिखर गिरिराज पे, चोपड़ा कुंड महान।
पारस चंदा बाहुबली, पूजूं मैं धरि ध्यान।

ॐ श्री सम्मेदशिखर चोपड़ा कुंड मध्ये पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, बाहुबली जिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

२४ तीर्थंकरो के गणधरों की कूट

चौबीसों जिनराज के, गण नायक हैं जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्री गौतम स्वामी आदि गणधर देव ग्राम के उद्यान आदि भिन्न-भिन्न स्थानों से निर्वाण पधारे हैं तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री कुंथुनाथ भगवान की टोंक (ज्ञानधर कूट)

कुंथुनाथ जिनराज का, कूट ज्ञानधर जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीकुन्थुनाथ जिनेंद्रादि मुनि 96 कोड़ा-कोडी, 96 करोड़, 32 लाख, 96 हजार, 742 मुनि इस कूट से सिद्ध हुए, तिनके चरणारविन्द को मेरा मन, वच, काय से बारम्बार नमस्कार हो, जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री नमिनाथ स्वामी की टोंक (मित्रधर कूट)

नमिनाथ जिनराज का, कूट मित्रधर जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेंद्रादि मुनि 9 कोड़ा-कोडी 1 अरब 45 लाख 7 हजार 942 मुनि इस कूट से सिद्ध हुए,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री अरहनाथ स्वामी की टोंक (नाटक कूट)

अरहनाथ जिनराज का, नाटक कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेंद्रादि मुनि 99 करोड़ 99 लाख 99 हजार 999 मुनि अर्थात 1 कम 1 अरब इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री मल्लिनाथ स्वामी की टोंक (संवल कूट)

 मल्लिनाथ जिनराज का, संवल कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथ जिनेंद्रादि मुनि 96 करोड़ मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री श्रेयांसनाथ स्वामी की टोंक (संकुल कूट)

श्रेयांसनाथ जिनराज का, संकुल कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेंद्रादि मुनि 96 कोड़ा-कोडी 96 करोड़ 96 लाख 9 हजार 542 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री पुष्पदंत स्वामी की टोंक (सुप्रभ कूट)

पुष्पदंत जिनराज का, सुप्रभ कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंत जिनेंद्रादि मुनि 1 कोड़ा-कोडी 99 लाख 7 हजार 780 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री पद्मप्रभु स्वामी की टोंक (मोहन कूट)

पद्मप्रभ जिनराज का, मोहन कूट है जेह
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेंद्रादि मुनि 99 करोड़ 87 लाख 43 हजार 757 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री मुनिसुव्रतनाथ स्वामी की टोंक (निर्जर कूट)

मुनिसुव्रत जिनराज का, निरजर कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्रादि मुनि 99 कोड़ा कोडी 99 करोड़ 99 लाख 999 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री चन्द्रप्रभु स्वामी की टोंक (ललित कूट)

चन्द्रप्रभ जिनराज का, ललित कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेंद्रादि मुनि 984 अरब,12 करोड़,80 लाख,84 हजार 555 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री आदिनाथ भगवान की टोंक

ऋषभदेव जिन सिद्ध भये, गिरी कैलाश से जोय |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीऋषभनाथ जिनेंद्रादि 10 हजार मुनि कैलाश पर्वत से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री शीतलनाथ स्वामी की टोंक (विद्युतवर कूट)

शीतलनाथ जिनराज का, कूट विद्युतवर जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेंद्रादि मुनि 18 कोड़ा कोड़ी 42 करोड़ 32 लाख 42 हजार 905 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री अनंतनाथ स्वामी की टोंक (स्वयंभू कूट)

अनंतनाथ जिनराज का, कूट स्वयंभू वर जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेंद्रादि मुनि 96 कोड़ा कोड़ी 70 करोड़ 70 लाख 70 हजार 700 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री सम्भवनाथ स्वामी की टोंक (धवल कूट)

सम्भवनाथ जिनराज का, धवल कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीसम्भवनाथ जिनेंद्रादि मुनि 9 कोड़ा कोड़ी 12 लाख 42 हजार 500 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री वासुपूज्य भगवान की टोंक

वासुपूज्य जिन सिद्ध भये, चम्पापुर से जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यनाथ जिनेंद्रादि चम्पापुर मन्दारगिरी से 1 हजार मुनि सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री अभिनन्दननाथ स्वामी की टोंक (आनंद कूट)

अभिनन्दन जिनराज का, आनन्द कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दननाथ जिनेंद्रादि मुनि 72 कोड़ा कोड़ी 70 करोड़ 70 लाख 42 हजार 700 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री धर्मनाथ स्वामी की टोंक (सुदत्तवर कूट)

धर्मनाथ जिनराज का, कूट सुदत्तवर है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथ जिनेंद्रादि मुनि 29 कोड़ा कोड़ी 19 करोड़ 9 लाख 9 हजार 765 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री सुमतिनाथ स्वामी की टोंक (अविचल कूट)

सुमतिनाथ जिनराज का, अविचल कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेंद्रादि मुनि 1 कोड़ा कोड़ी 84 करोड़ 72 लाख 81 हजार 701 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री शांतिनाथ स्वामी की टोंक (कुंदप्रभ कूट)

शांतिनाथ जिनराज का, कुंदप्रभ कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेंद्रादि मुनि 9 कोड़ा कोड़ी 9 लाख 9 हजार 999 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री महावीर स्वामी की टोंक

महावीर जिन सिद्ध भये, पावापुर से जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीमहावीर स्वामी पावापुर के पद्म सरोवर स्थान से 26 मुनि सहित सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री विमलनाथ स्वामी की टोंक (सुवीर कूट)

विमलनाथ जिनराज का, सुवीर कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्री विमलनाथ जिनेंद्रादि मुनि 70 कोड़ा कोड़ी 60 लाख 6 हजार 742 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी की टोंक (प्रभास कूट)

सुपार्श्वनाथ जिनराज का, प्रभास कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेंद्रादि मुनि 49 कोड़ा कोड़ी 84 करोड़ 72 लाख 7 हजार 742 मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री अजितनाथ स्वामी की टोंक (सिद्धवर कूट)

अजितनाथ जिनराज का, सिद्धवर कूट है जेह |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेंद्रादि मुनि 80 करोड़ 54 लाख मुनि इस कूट से सिद्ध भये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री नेमिनाथ स्वामी की टोंक (उर्जयन्त कूट)

नेमिनाथ जिन सिद्ध भये, सिद्ध क्षेत्र गिरनार |
मन वच तन कर पूजहूँ, भव दधि पार उतार ||

ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेंद्रादि शम्बु प्रद्युम्न अनिरुद्ध इत्यादि 72 करोड़ 700 मुनि गिरनार पर्वत से मोक्ष गये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

 

श्री पार्श्वनाथ स्वामी की टोंक (स्वर्णभद्र कूट)

पार्श्वनाथ जिनराज का, स्वर्णभद्र है कूट |
मन वच तन कर पूजहूँ, शिखर सम्मेद यजेह ||

ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेंद्रादि मुनि 82 करोड़ 84 लाख 45 हजार 742 मुनि परम पुनीत स्वर्णभद्र पर्वत से मोक्ष गये,तिनके चरणारविन्द को मेरा मन,वच,काय से बारम्बार नमस्कार हो,जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||




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श्री मंगलाष्टक स्तोत्र - अर्थ सहित अर्हन्तो भगवत इन्द्रमहिताः, सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा, आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायकाः श्रीसिद्धान्तसुपाठकाः, मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः, पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं, कुर्वन्तु नः मंगलम्   ||1|| अर्थ – इन्द्रों द्वारा जिनकी पूजा की गई, ऐसे अरिहन्त भगवान, सिद्ध पद के स्वामी ऐसे सिद्ध भगवान, जिन शासन को प्रकाशित करने वाले ऐसे आचार्य, जैन सिद्धांत को सुव्यवस्थित पढ़ाने वाले ऐसे उपाध्याय, रत्नत्रय के आराधक ऐसे साधु, ये पाँचों  परमेष्ठी प्रतिदिन हमारे पापों को नष्ट करें और हमें सुखी करे! श्रीमन्नम्र – सुरासुरेन्द्र – मुकुट – प्रद्योत – रत्नप्रभा- भास्वत्पादनखेन्दवः प्रवचनाम्भोधीन्दवः स्थायिनः ये सर्वे जिन-सिद्ध-सूर्यनुगतास्ते पाठकाः साधवः स्तुत्या योगीजनैश्च पञ्चगुरवः कुर्वन्तु नः मंगलम् ||2|| अर्थ – शोभायुक्त और नमस्कार करते हुए देवेन्द्रों और असुरेन्द्रो के मुकुटों के चमकदार रत्नों की कान्ति से जिनके श्री चरणों के नखरुपी चन्द्रमा की ज्योति स्फुरायमान हो रही है, और जो प्रवचन रुप सागर की वृद्धि करने के लिए स्थायी चन्द

RISHIMANDAL STOTRAM / ऋषिमण्डल स्तोत्रम्

ऋषिमण्डल स्तोत्रम् आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं व्याप्य यत्स्थितम् | अग्निज्वालासमं नादं बिन्दुरेखासमन्वितम् ||१|| अग्निज्वाला-समाक्रान्तं मनोमल-विशोधनम् | दैदीप्यमानं हृत्पद्मे तत्पदं नौमि निर्मलम् ||२|| युग्मम् | ॐ नमोऽर्हद्भ्य : ऋषेभ्य: ॐ सिद्धेभ्यो नमो नम: | ॐ नम: सर्वसूरिभ्य: उपाध्यायेभ्य: ॐ नम: ||३|| ॐ नम: सर्वसाधुभ्य: तत्त्वदृष्टिभ्य: ॐ नम: | ॐ नम: शुद्धबोधेभ्यश्चारित्रेभ्यो नमो नम: ||४|| युग्मम् | श्रेयसेऽस्तु श्रियेऽस्त्वेतदर्हदाद्यष्टकं शुभम् | स्थानेष्वष्टसु संन्यस्तं पृथग्बीजसमन्वितम् ||५|| आद्यं पदं शिरो रक्षेत् परं रक्षतु मस्तकम् | तृतीय रक्षेन्नेत्रे द्वे तुर्यं रक्षेच्च नासिकाम् ||६|| पंचमं तु मुखं रक्षेत् षष्ठं रक्षतु कण्ठिकाम् | सप्तमं रक्षेन्नाभ्यंतं पादांतं चाष्टमं पुन: ||७|| युग्मम् | पूर्व प्रणवत: सांत: सरेफो द्वित्रिपंचषान् | सप्ताष्टदशसूर्यांकान् श्रितो बिन्दुस्वरान् पृथक् ||८|| पूज्यनामाक्षराद्यास्तु पंचदर्शनबोधकम् | चारित्रेभ्यो नमो मध्ये ह्रीं सांतसमलंकृतम ||9|| जाप्य मंत्र:- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रूं ह

जलाभिषेक - Jal abhishek Mantra -Duravnamra

दुरावनम्र-सुरनाथ-किरीट-कोटि- संलग्न-रत्न-किरण-च्छवि-धुसराध्रिम । प्रस्वेद-ताप-मल-मुक्तमपि-प्रकृष्टै- र्भक्तया जलै-र्जिनपर्ति बहुधाभिषेच्चे ।। मंत्र-१: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं झं झं इवीं इवीं क्ष्वीं क्ष्वीं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते पवित्रतरजलेन जिनाभिषेचयामीस्वाहा । मंत्र-२: ॐ ह्रीं श्रीमन्तं भगवन्तं क्रपालसंतम वृषभादि वर्धमानांत-चतुर्विंशति तीर्थंकर-परमदेवं आध्यानाम आध्ये जम्बुदीपे भरतक्षेत्रे आर्यखंडे देशे.... नाम नगरे एतद .... जिन चैत्यालये वीर निर्वाणसंवत ...... मासोत्तम-मासे ...... मासे . पक्षे........ तिथौ ......... वासरे प्रशस्त ग्रहलग्न होरायं मुनि-आर्यिका-श्रावक-श्रविकानाम सकलकर्म-क्षयार्थ जलेनाभिषेकं करोमि स्वाहा । इति जलस्नपनम् अभिषेक से संबंधित रचना See More >>