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दसलक्षण पर्व ।। Das Lakshan Parv ।। Paryushan Parv

उत्तम क्षमा

भाद्रमाह के सुद पंचमी से दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व शुरू होते है यह पहला दिन होता है ईस दिन ऋषि पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है॥

(क) हम उनसे क्षमा मांगते है जिनके साथ हमने बूरा व्यवहार किया हो और उन्हें क्षमा करते है जिन्होंने हमारे साथ बूरा व्यवहार किया हो॥ सिर्फ इंसानो के लिए ही नहीं बल्कि हर एक इन्द्रिय से पांच इन्द्रिय जिवो के प्रति जिनमें जिव है उनके प्रति भी ऐसा भाव रखते हैं ॥

(ख) उत्तम क्षमा धर्म हमारी आत्मा को सही राह खोजने मे और क्षमा को जीवन और व्यवहार में लाना सिखाता है जिससे सम्यक दर्शन प्राप्त होता है ॥ सम्यक दर्शन वो चिज है जो आत्मा को कठोर तप त्याग की कुछ समय की यातना सहन करके परम आनंद मोक्ष को पाने का प्रथम मागॅ है ॥

इस दिन बोला जाता है-

सबको क्षमा सबसे क्षमा ॥

उत्तम मार्दव

भाद्रमाह के सुद छठ को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का दूसरा दिन होता है

(क) अकसर धन, दौलत, शान और शौकत ईनसान को अहंकारी और अभिमानी बना देता है ऐसा व्यक्ति दूसरो को छोटा और अपने आप को सर्वोच्च मानता है॥

यह सब चीजें नाशवंत है यह सब चीजें एक दिन आप को छोड देंगी या फिर आपको एक दिन जबरन ईन चीजों को छोडना ही पडेगा ॥ नाशवंत चीजों के पिछे भागने से बेहतर है कि अभिमान और परिग्रह सब बूरे कमॅ में बढोतरी करते है जिनको छोडा जाये और सब से विनम्र भाव से पेश आए सब जिवो के प्रति मैत्री भाव रखे क्योंकि सभी जिवो को जिवन जिने का अधिकार है ॥

(ख) मार्दव धमॅ हमे अपने आप की सही वृत्ति को समझने का जरिया है

सभी को एक न एक दिन जाना हि है तो फिर यह सब परिग्रहो का त्याग करे और बेहतर है कि खूद को पहचानो और परिग्रहो का नाश करने के लिए खूदको तप, त्याग के साथ साधना रुपी भठठी में झोंक दो क्योंकि इनसे बचनेका और परमशांति मोक्ष को पाने का साधना ही एकमात्र विकल्प है ॥

उत्तम आर्जव

भाद्रमाह के सुद सप्तमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का तिसरा दिन होता है

(क) हम सब को सरल स्वभाव रखना चाहिए बने उतना कपट को त्याग करना चाहिए॥

(ख) कपट के भ्रम में जीना दूखी होने का मूल कारण है॥

आत्मा ज्ञान, खुशी, प्रयास, विश्वास जैसे असंख्य गूणो से सिंचित है उस में ईतनी ताकत है कि केवल ज्ञान को प्राप्त कर सके॥ उत्तम आजॅव धर्म हमें सिखाता है कि मोह-माया, बूरे कमॅ सब छोड छाड कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ॥

उत्तम शौच

भाद्रमाह के सुद अष्टमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का चौथा दिन होता है

(क) किसी चिज की इच्छा होना ईस बात का प्रतीक की हमारे पास वह चिज नहीं है तो बेहतर है की हम अपने पास जो है उसके लिए परमात्मा का शुक्रिया अदा करे और संतोषी बनकर उसी में काम चलाये ॥

(ख) भौतिक संसाधनों और धन दौलत में खूशी खोजना यह महज आत्मा का एक भ्रम है।

उत्तम शौच धमॅ हमे यही सिखाता है कि शुद्ध मन से जितना मिला है उसी में खूश रहो परमात्मा का हमेशा शुक्रिया मानों और अपनी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥

उत्तम सत्य

भाद्रमाह के सुद नवमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का पाँचवाँ दिन होता है

(क) झूठ बोलना बूरे कमॅ में बढोतरी करता है ॥

(ख) सत्य जो 'सत' शब्द से आया है जिसका मतलब है वास्तविक होना॥

उत्तम सत्य धमॅ हमे यही सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है और इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥ अपने मन आत्मा को सरल और शुद्ध बना लें तो सत्य अपने आप ही आ जाएगा ॥

उत्तम संयम

भाद्रमाह के सुद दशमी को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का छठा दिन होता है ईस दिन को धूप दशमी के रूप में मनाया जाता है लोग ईस दिन बैंड बाजो के साथ घर से धूप लेकर जाते है और मंदिर में भगवान के दर्शन के साथ धूप चढा कर खूशबू फैलाते है और कामना करते हैं कि ईस धूप की तरह ही हमारा जीवन भी हमेशा महकता रहें॥

पसंद नापसंद ग़ुस्से का त्याग करना। इन सब से छुटकारा तब ही मुमकिन है जब अपनी आत्मा को इन सब प्रलोभनों से मुक्त करे और स्थिर मन के साथ संयम रखें ॥ ईसी राह पर चलते परम आनंद मोक्ष की प्राप्ति मुमकिन है ॥

उत्तम तप

भाद्रमाह के सुद ग्यारस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का सातवाँ दिन होता है

(क) तप का मतलब सिर्फ उपवास भोजन नहीं करना सिफॅ इतना ही नहीं है बल्कि तप का असली मतलब है कि इन सब क्रिया के साथ अपनी इच्छाओं और ख्वाहिशों को वश में रखना ऐसा तप अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करते है ॥

(ख) साधना इच्छाओं की वृद्धि ना करने का एकमात्र मागॅ है ॥ पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने करिब छह महीनों तक ऐसी तप साधना (बिना खाए बिना पिए) कि थी और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त किया था ॥

हमारे तीर्थंकरों जैसी तप साधना करना इस जमाने में शायद मुमकिन नहीं है पर हम भी ऐसी ही भावना रखते है और पर्यूषण पवॅ के 10 दिनों के दौरान उपवास (बिना खाए बिना पिए), ऐकाशन (एकबार खाना-पानी) करतें है और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करने की राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं ॥

उत्तम त्याग

भाद्रमाह के सुद बारस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का आठवाँ दिन होता है

(क) 'त्याग' शब्द से हि पता लग जाता है कि इसका मतलब छोडना है और जीवन को संतुष्ट बना कर अपनी इच्छाओं को वश में करना है यह न सिर्फ अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है बल्कि बूरे कर्मों का नाश भी करता है ॥

छोडने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है क्योंकि जैन संत सिफॅ घरबार नहीं यहां तक कि अपने कपडे भी त्याग देता है और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतित करता है ॥ ईनसान की शक्ति इससे नहीं परखी जाती की उसके पास कितनी धन दौलत है बल्कि इससे परखी जाती है कि उसने कितना छोडा कितना त्याग किया है !

(ख) उत्तम त्याग धमॅ हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाके ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना मुमकिन है ॥ त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही होती है ॥

उत्तम आकिंचन्य

भाद्रमाह के सुद तेरस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का नौवाँ दिन होता है

(क) आँकिंचन हमें मोह को त्याग करना सिखाता है ॥ दस शक्यता है जिसके हम बाहरी रूप में मालिक हो सकते है; जमीन, घर, चाँदी, सोना, धन, अन्न, महिला नौकर, पुरुष नौकर, कपडे और संसाधन इन सब का मोह न रखकर ना सिफॅ इच्छाओं पर काबू रख सकते हैं बल्कि इससे गुणवान कर्मों मे वृद्धि भी होती है ॥

(ख) आत्मा के भीतरी मोह जैसे गलत मान्यता, गुस्सा, घमंड, कपट, लालच, मजाक, पसंद नापसंद, डर, शोक, और वासना इन सब मोह का त्याग करके ही आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है ॥

सब मोह पप्रलोभनों और परिग्रहो को छोडकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥

उत्तम ब्रह्मचर्य

भाद्रमाह के सुद चौदस को दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का दसवाँ दिन होता है इस दिन को अनंत चतुर्दशी कहते है ईस दिन को लोग परमात्मा के समक्ष अखंड दिया लगाते है

(क) ब्रह्मचर्य हमें सिखाता है कि उन परिग्रहो का त्याग करना जो हमारे भौतिक संपर्क से जुडी हुई है

जैसे जमीन पर सोना न कि गद्दे तकियों पर, जरुरत से ज्यादा किसी वस्तु का उपयोग न करना, व्यय, मोह, वासना ना रखते सादगी से जीवन व्यतित करना ॥ कोई भी संत ईसका पालन करते है और विशेषकर जैन संत शरीर, जुबान और दिमाग से सबसे ज्यादा इसका ही पालन करते हैं ॥

(ख) 'ब्रह्म' जिसका मतलब आत्मा, और 'चर्या' का मतलब रखना, ईसको मिलाकर ब्रह्मचर्य शब्द बना है, ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा मे रहना है ॥

ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओ के गुलाम हि हैं ॥



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